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५६७—यदि पूर्ण क्रिया की उद्देश्य-पूर्त्ति के लिंग-वचन-पुरुष उद्देश्य के लिंग-वचन-पुरुष से भिन्न हों तो क्रिया के लिंग-वचन-पुरुष बहुधा उद्देश्य ही के अनुसार होते हैं, जैसे, वह टकसालसमझा जावेगा, (सत्य॰), बेटी किसी दिन पराए घर का धन होती है (शकु॰), हम क्या से क्या हो गये (सर॰), काले कपड़े शोक का चिह्न माने जाते हैं। दूर देश में बसनेवाली जाति वहाँ के असली रहनेवालों नष्ट का करने का कारण हुई। (सर॰)।

अप॰—यदि उद्देश्य-पूर्त्ति का अर्थ मुख्य हो अथवा उसमें उत्तम या मध्यम पुरुष सर्वनाम आवे तो क्रिया के लिंग-वचन-पुरुष उद्देश्य-पूर्त्ति के अनुसार होते हैं और उसके पूर्व संबंध-कारक की विभक्ति बहुधा उसीके लिंग के अनुसार होती है, जैसे,—हिज्जे और रूपांतर का प्रमाण हिंदी हो सकती है (सर॰), उनकी एक रकावी मेरा एक निवाला होता (विचित्र॰), इन सब सभाओं का मुख्य उद्देश्य मैं ही था, उनकी आशा तुम्हीं हो, झूठ बोलना उसकी आदत हो गई है, इस घोर युद्ध का कारण प्रजा की संपत्ति थी

[सू॰—शिष्ट लेखक बहुधा इस बात का विचार रखते हैं कि उद्देश्य-पूर्त्ति के लिंग-वचन यथा-समव वही हों जो उद्देश्य के होते हैं, जैसे, मोड़ी लिपि कैथी की भी काकी है (सर॰), उसका कवि भी हम लोगों का एक जीवन है (सत्य॰), हम लेागों के पूर्व पुरुष महाराज हरिश्चद्र भी थे (तथा), यह तुम्हारी सखी उनकी बेटी क्योंकर हुई (शकु॰), महाराज उसके हाथ के खिलौने थे (विचित्र॰)।]

५६९—यदि सयोजक समुच्चय-बोधक से जुड़ी हुई एक ही पुरुष और एक ही लिंग की एक से अधिक एकवचन प्राणिवाचक संज्ञाएँ अप्रत्यय कर्त्ताकारक में आकर उद्देश्य हों, तो उनके योग से क्रिया उसी पुरुष और उसी लिंग के बहुवचन में आएगी; जैसे, किसी वन