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में हिरन और कौआ रहते थे; मोहन और सोहन सड़क पर खेल रहे हैं; बहू और लड़की काम कर रही हैं ; चांडाल के भेष में धर्म और सत्य आते हैं (सत्य॰); नाई और ब्राह्मण टीका लेकर भेजे गये; घोड़ा और कुत्ता एक जगह बॉधे जाते थे; तितली और पंखी ऊँचे नही उड़ी है।

अप॰—उद्देश्यों की पृथक्ता के अर्थ में क्रिया बहुधा एकवचन में आती है; जैसे, बैल और घोड़ा अभी पहुँचा है; मेरे पास एक गाय और एक भैंस है; राजधानी में राजा और उसका मंत्री रहता है; वहाँ एक बुढ़िया और लड़की आई; कुटुंब का प्रत्येक बालक और वृद्ध इस बात का प्रयत्न करता है (सर॰)।

५६९—संयोजक समुच्चय-बोधक से जुड़ी हुई एक ही पुरुष और लिग की दो वा अधिक अप्राणिवाचक अथवा भाववाचक संज्ञाएँ यदि एकवचन में आवें तो क्रिया बहुधा एकवचन ही में रहती है; जैसे, लड़के की देह में केवल लोहू और मांस रह गया है; उसकी बुद्धि का बल और राज का अच्छा नियम इसी एक काम से मालूम हो जावेगा (गुटका॰); मेरी बातें सुनकर महारानी के हर्ष तथा आश्चर्य हुआ; कुएँ में से घड़ा और लोदा निकला; कठोर संकीर्णता में क्या कभी बालकों की मानसिक पुष्टि, चित्त की विस्तृति, और चरित्र की वलिष्टता हो सकती है (सर॰)।

(अ) ऐसे उदाहरणों में कोई-कोई लेखक बहुवचन की क्रिया लाते हैं; जैसे, मन और शरीर नष्टभ्रष्ट हो जाते हैं (सर॰); माता के खान-पान पर भी बच्चे की नीरोगता और जीवन अवलंबित हैं (तथा॰)।

५७०—यदि भिन्न-भिन्न लिगों की दो (वा अधिक) प्राणिवाचक संज्ञाएँ एकवचन में आवे ते क्रिया बहुधा पुल्लिंग, बहुवचन में आती है; जैसे, राजा और रानी भी मूर्च्छित हो गये (सर॰); राज-