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पुत्र और मलयवती उद्यान को जा रहे हैं (तथा), कश्यप और अदिति बातें करते हुए दिखाई दिये (शकु॰), महाराज और महारानी बहुत प्यार करते थे (विचित्र॰), बैल और गाय चरते हैं।

(अ) कई एक द्वंद्व-समासों का प्रयोग इसी प्रकार होता है; जैसे, स्त्री-पुत्र भी अपने नहीं रहते (गुटका॰), बेटा-बेटी सबके घर होते हैं, उनके मा-बाप गरीब थे।

[सू॰—इस नियम का सिद्धांत यह है कि पुल्लिग बहुवचन क्रिया से भिन्न-भिन्न उद्देश्यों की केवल संख्या ही सूचित करने की आवश्यकता है, उनकी जाति नहीं। यदि क्रिया स्त्रीलिंग, बहुवचन में रक्खी जायगी, तो यह अर्थ होगा कि स्त्री-जाति के दो प्राणियों के विषय में कहा गया है, जो बात यथार्थ में नहीं है।]

५७१—यदि भिन्न-भिन्न लिग-वचन की एक से अधिक संज्ञाएँ अप्रत्यय कर्त्ता-कारक में आवें तो क्रिया के लिग-वचन अंतिम कर्त्ता के अनुसार होते हैं, जैसे, महाराज और समूची सभा उसके दोषों के भली भाँति जानती है (विचित्र॰), गर्मी और हवा के झकोरे और भी क्लेश देते थे (हित॰), नदियों में रेत और फूल-फलियाँ खेतों में हैं (ठेठ॰), इसके तीन नेत्र और चार भुजाएँ थी, ईसा की जीवनी में उनके हिसाब की खाता तथा डायरी न मिलेगी (सर॰), हास में मुँह, गाल और आँखें फूली हुई जान पड़ती हैं (नागरी॰)।

५७२—भिन्न-भिन्न पुरुषों के कर्त्ताओं में यदि उत्तम पुरुष आवे तो क्रिया उत्तम पुरुष होगी, और यदि मध्यम तथा अन्य पुरुष कर्त्ता हों तो क्रिया मध्यम पुरुष में रहेगी, जैसे, हम और तुम वहाँ चलेंगे; तू और वह कल आना, तुम और वे कब आओगे, वह और मैं साथ पढती थी; हम और यूरप के सभ्य देश इस दोष से बचे हैं (विचित्र॰)।