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(आ) प्रार्थना—प्रश्नवाचक वाक्यों में यह अर्थ पाया जाता है; जैसे, क्या आप कल वहाँ चलेंगे? क्या तुम मेरा इतना काम कर दोगे? क्या वे मेरी बात सुनेंगे?

(इ) संभावना—वह मुझे कभी न कभी मिलेगा। किसी न किसी तरह यह काम हो जायगा। कबहुँ तो दीनानाथ के कनक पड़ेगी कान।

(ई) संकेत—यदि रोगी की सेवा होगी, तो वह अच्छा हो जायगा; अगर हवा चलेगी तो गरमी कम हो जायगी

(ॠ) संदेह, उदासीनता—'होना' क्रिया का सामान्य भविव्यत् काल बहुधा इस अर्थ में आता है, जैसे, कृष्ण गोपाल का भाई होगा; नौकर इस समय बाजार मे होगा; क्या उनके लड़की है? होगी; क्या वह आदमी पागल है? होगा; कौन जाने ; अगर वह जायगा तो जायगा, नहीं तो मैं जाऊँगा

(३) प्रत्यक्ष विधि ।

५९६—इस काल के अर्थ ये हैं—

(अ) अनुमति, प्रश्न—उत्तम पुरुष के दोनों वचनों में किसी की अनुमति अथवा परामर्श ग्रहण करने में इस काल का उपयोग होता है; जैसे, क्या मैं जाऊँ? हम लोग यहाँ बैठें?

(आ) सम्मति—उत्तम पुरुष के दोनों वचनों में कभी-कभी इस काल से श्रोता की सम्मति का बोध होता है; जैसे, चलें, उस रोगी की परीक्षा करें। हम लोग मोहन को यहाँ बुलावें।

"देखना" क्रिया से इस प्रयोग में कभी-कभी धमकी सूचित होती है; जैसे, देखें, तुम क्या करते हो! देखें, वह कहाँ जाता है!

(इ) आज्ञा और उपदेश—यहाँ बैठो; किसी को गाली मत दो; तजो रे मन हरि-विमुखन को संग (सूर॰); नौकर अभी यहाँ से जावे।