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(५२८)

है; जैसे, ले, मैं जाता हूँ; लो, मैं यह चला; मैंने कहा कि लो, अब कुछ देरी नहीं है; चलो, आपने यह काम कर लिया।

(४) परोक्ष विधि।

५९८—परोक्ष विधि से आज्ञा, उपदेश, प्रार्थना आदि के साथ भविष्यत्-काल का अर्थ पाया जाता है; जैसे, कल मेरे यहाॅ आना; हमारी शीघ्र ही सुधि लीजियो; (भारत॰); कीजो सदा धर्म से शासन, स्वत्व प्रजा के मत हरियो (सर॰)।

५९९—"आप" के साथ परोक्ष विधि में गांत आदरसूचक विधि का प्रयोग होता है; जैसे, कल आप वहाॅ जाइयेगा। "आप जाइयो" शुद्ध प्रयोग नही है।

६००—निषेध के लिए विधि-कालों में बहुधा न, नही और मत तीनों अव्ययों का प्रयोग होता है, पर "आप" के साथ परोक्ष विधि में और उत्तम तथा अन्य-पुरुषों में "मत" नही आता। "न" से साधारण निषेध, "मत" से कुछ अधिक और "नही" से और भी अधिक निषेध सूचित होता है, जैसे, वहाॅ जाना, पुत्र (एकांत॰); पुत्री, अब बहुत लाज मत कर (शकु॰); ब्राह्मण देवता, बालकों के अपराध से नहीं रुष्ट होना (सत्य॰); आप वहाॅ जाइयेगा (अं॰—६४२)।

( ५ ) सामान्य संकेतार्थ-काल।

६०१—यह काल नीचे लिखे अर्थो में आता है—

(अ) क्रिया की प्रसिद्धता का संकेत (तीन कालों में); जैसे, मेरे एक भी भाई होता, तो मुझे बडा सुख मिलता (भूत)। जो उसका काम न होता तो वह अभी न आता (वर्त्तमान)। यदि कल आप मेरे साथ चलते, तो वह काम अवश्य हो जाता। (भविष्यत्)।