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३–वणों के समुदाय को वर्णमाला कहते हैं। हिंदी वर्णमाला मैं ४६ वर्ण हैं। इनके दो भेद हैं, (१) स्वर (२) व्यंजन | ४----स्वर उन वणों को कहते हैं जिनका उच्चारण स्वतंत्रता से होता है और जो व्यंजनों के उच्चारण में सहायक होते हैं ; जैसे--- अ, इ, उ, ए, इत्यादि । हिंदी में स्वर ११ र्हैं-

अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ ।

५----व्यंजन वे वर्ण हैं, जो स्वर की सहायता के बिना नहीं बोले जा सकते । व्यंजन ३३ हैं-

क, ख, ग, घ, ङ । च, छ, ज, झ, ।

ट, ठ, ड, ढ, ण । त, थ, द, ध, न ।

प, फ, ब, भ, म । य, र, ल, व ।

श,ष,स,ह ।

इन व्यंजनों में उच्चारण की सुगमता के लिए 'अ' मिला दिया गया है। जब व्यंजनों में कोई स्वर नहीं मिला रहता तब उनका अस्पष्ट


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फारसी, अँगरेजी, यूनानी आदि भाषाओं में वणों के नाम और उच्चारण एकसे नहीं हैं, इसलिए विद्यार्थियों को उन्हें पहचानने में कठिनाई होती है। इन भाषाओं में जिन ( अलिफ, ए, डेल्टा, आदि ) को वर्ण कहते हैं उनके खंड हो सकते हैं । ये यथार्थ में वर्ण नहीं, किंतु शब्द हैं । यद्यपि व्यंजन के उच्चारण के लिए उसके साथ स्वर लगाने की आवश्यकता होती है, तो भी उसमें केवल छोटे से छोटा स्वर अर्थात् अकार मिलाना चाहिए, जैसा हिंदी में होता है ।।

॥ संस्कृत-व्याकरण में स्वरों को अच् और व्यंजनों को हल् कहते हैं ।

+ सस्कृत में ऋ, लृ, लृ, ये तीन स्वर और हैं; पर हिंदी में इनका प्रयोग नहीं होता। ऋ ( ह्रस्व ) भी केवल हिंदी में आनेवाले तत्सम शब्दों ही में आती है; जैसे, ऋषि, ऋण, ऋतु, कृपा, नृत्य, मृत्यु, इत्यादि।

+ इनके सिवा वर्णमाला में तीन ब्यजन और मिला दिये जाते हैं- क्ष, त्र, ज्ञ । ये संयुक्त व्यंजन हैं और इस प्रकार मिलकर बने हैं—क्+ प=क्ष, त् + र=त्र, ज् + =ज्ञ । ( देखो २१ वाँ अंक ।)