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(इ) भूत अथवा भविष्यत्-काल की अपूर्णता की संभावना— जब आप आये, तब मैं भोजन करता होऊॅ। अगर मैं लिखता होऊँ तो मुझे न बुलाना।

(ई) उत्पेक्षा—आप ऐसे बोलते हैं मानो मुख से फूल झड़ते हैं। ऐसा शब्द हो रहा था कि जैसे मेघ गरजता हो।

(उ) सांकेतिक वाक्यों में भी बहुधा इस काल का प्रयोग होता है, जैसे, अगर वे आते हैं, तो मैं उनके लिए रसोई का प्रबंध करूँ।

[सू॰—उपर्युक्त वाक्यो में कभी-कभी सहायक क्रिया 'होना' भूतकाल के रूप में आती है; जैसे, अगर वह आता हुआ, तो क्या होगा?]

(८) संदिग्ध वर्त्तमान-काल।

६०७—यह काल नीचे लिखे अर्थो में आता है—

(अ) वर्त्तमान-काल की क्रिया का संदेह—गाड़ी आती होगी। वे मेरी सब कथा जानते होगे। तेरे लिए गैतमी अकुलाती होगी।

(आ) तर्क—चाय पत्तियो से बनती होगी। यह तेल खदान से निकलता होगा। आप सबके साथ ऐसा ही व्यवहार करते होगे।

(इ) भूतकाल की अपूर्णता का संदेह—उस समय मैं वह काम करता होऊँगा। जब आप उनके पास गये, तब वे चिट्ठी लिखते होगे।

(ई) उदासीनता वा तिरस्कार—यहाँ पंडितजी आते हैं?— आते होगे।

(१०) अपूर्ण संकेतार्थ-काल।

६०८—इस काल से नीचे लिखे अर्थ सूचित होते हैं—

(अ) अपूर्ण क्रिया की असिद्धता का संकेत—अगर वह काम करता होता तो अब तक चतुर हो जाता। अगर हम कमाते होते, तो ये बाते क्यों सुनना पड़ती।