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[सू॰—(१) 'होना' क्रिया के सामान्य भूतकाल के निषेधवाचक रूप से वर्त्तमान-काल की इच्छा सूचित होती है; जैसे, आज मेरे कोई बहिन न हुई, नही तो आज मैं भी उसके घर जाकर खाता (गुटका॰)। मेरे पास तलवार न हुई, नहीं तो उन्हें अन्याय का स्वाद चखा देता।

(२) होना, ठहरना, कहलाना के सामान्य भूतकाल से वर्त्तमान का निश्चय सूचित होता है; जैसे, आप लोग साधु हुए (ठहरे व कहलाये), आपको कोई कमी नहीं हो सकती।]

(उ) 'आना' क्रिया के भूतकाल से कभी-कभी तिरस्कार के साथ वर्त्तमान-कालिक अवस्था सूचित होती है; जैसे, ये आये दुनिया भर के होशयार। दाता को बिकवाकर छोड़ा, आये विश्वामित्र बड़े (सर॰)!

(ऊ) प्रश्न करने मे समझना, देखना, आदि क्रियाओं के सामान्य भूते से वर्त्तमान-काल का बोध होता है; जैसे, वह आपको वहाँ भेजता है—समझे? देखा, कैसी बात कहता है?

[सू॰—कल्पना में मानना क्रिया का सामान्य-भूत वर्त्तमान-काल सूचित करता है; जैसे, माना कि उसे स्वर्ग लेने की इच्छा न हो।]

(ऋ) संकेतार्थक वाक्यों में इस काल से बहुधा संभाव्य-भविष्यत्-काल का अर्थ सूचित होता है, जैसे, यदि मैं वहाॅ गया भी, तो कोई लाभ नहीं है। यह काम चाहे उसने किया, चाहे उसके भाई ने किया, पर वह पूरा न होगा।

(१२) आसन्न भूतकाल (पूर्ण वर्त्तमान-काल)।

६१०—इस काल के अर्थ ये है—

(अ) किसी भूतकालिक क्रिया का वर्त्तमान-काल में पूरा होना, जैसे, नगर में एक साधु आये हैं। उसने अभी नहाया है।

(आ) ऐसी भूतकालिक क्रिया की पूर्णता जिसका प्रभाव वर्त्तमान-काल में पाया जावे , जैसे, बिहारी कवि ने सतसई