(ई) सांकेतिक वाक्यों में भी इस काल का प्रयोग होता है; जैसे, यदि मुझसे कोई दोष हुआ हो तो आप उसे क्षमा कीजियेगा। अगर तुमने मेरी किताब ली हो तो सच-सच क्यों नहीं कह देते।
(१५) संदिग्ध भूतकाल।
६१३—इस काल के अर्थ ये हैं—
(अ) भूतकालिक क्रिया का सदेह—जैसे, उसे हमारी चिट्ठी मिली होगी। तुम्हारी घडी नैकर ने कहाँ रख दी होगी।
(आ) अनुमान—कहीं पानी बरसा होगा, क्योंकि ठंडी हवा चल रही है। रोहिताश्व भी अब इतना बडा हुआ होगा। लाट साहब कल उदयपुर पहुँचे होंगे।
(इ) जिज्ञासा—श्रीकृष्ण ने गोवर्द्धन कैसे उठाया होगा? कण्व मुनि ने क्या सँदेशा भेजा होगा?
[सू॰—यह प्रयोग बहुधा प्रश्नवाचक वाक्यों में होता है।]
(ई) तिरस्कार वा घृणा—पडितजी ने एक पुस्तक लिखी है—लिखी होगी।
(उ) सांकेतिक वाक्यों में इस काल से सभावना की कुछ मात्रा सूचित होती है, जैसे यदि मैंने आपकी बुराई की होगी, तो ईश्वर मुझे दंड देगा। अगर उसने मुझे बुलाया होगा, तो मुझसे उसका कुछ काम अवश्य होगा।
(१६) पूर्ण संकेतार्थ-काल।
६१४—इस सकेतार्थ काल से नीचे लिखे अर्थ सूचित होते हैं और इसका उपयोग बहुधा सांकेतिक वाक्यों में होता है—
(अ) पूर्ण क्रिया का असिद्ध संकेत—जैसे, जो मैंने अपनी लड़की न मारी होती, तो अच्छा था। यदि तूने भगवान् को इस मंदिर में बिठाया होता, तो यह अशुद्ध क्यों रहता।