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उच्चारण दिखाने के लिए उनके नीचे एक तिरछी रेखा ( ) कर देते हैं। जिसे हिंदी में हल् कहते हैं; जैसे, क् , थ्, म्, इत्यादि ।

६–व्यंजनों में दो वर्ण और हैं जो अनुस्वार और विसर्ग कहलाते हैं। अनुस्वार का चिह्न स्वर के ऊपर एक बिंदी और विसर्ग का चिह्न स्वर के आगे दो बिंदियाँ हैं, जैसे, अं, अ । व्यंजनों के समान इनके उच्चारण में भी स्वर की आवश्यकता होती है, पर इनमें और दूसरे व्यंजनों में यह अंतर है कि स्वर इनके पहले आता है और दूसरे व्यंजनों के पीछे, जैसे, अ + -, क् + अ* ।

७–हिंदी वर्णमाला के वणों के प्रयोग के संबंध में कुछ नियम ध्यान देने योग्य हैं-

( अ ) कुछ वर्णं केवल संस्कृत ( तत्सम ) शब्दों में आते हैं, जैसे, ऋ, ण , घ् । उदाहरण—ऋतु, ऋषि, पुरुष, गण, रामायण । ( आ ) ड् और ब् पृथक् रूप से केवल संस्कृत शब्दों में आते हैं,

जैसे पराङ्मुख, नन् तत्पुरुप ।

( इ ) संयुक्त व्यजनों में से क्ष और ज्ञ केवल संस्कृत शब्दों में आते हैं, जैसे मोक्ष, संज्ञा।

{ ई ) ड्, ए हिंदी में शब्दों के आदि में नहीं आते । अनुस्वार और विसर्ग भी शब्दों के आदि में प्रयुक्त नहीं होते ।

( उ ) विसर्ग केवल थोड़े से हिंदी शब्दों में आता है, जैसे, छः, छि; इत्यादि।


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  • अनुस्वार और विसर्ग के नाम और उच्चारण एक नहीं हैं। इनके रूप और उच्चारण की विशेषता के कारण कोई कोई वैयाकरण इन्हें अं और अः के रूप में स्वरों के साथ लिखते हैं।