६१७—क्रियार्थक संज्ञा का संप्रदान-कारक बहुधा निमित्त वा प्रयोजन के अर्थ में आता है; पर कभी-कभी उसकी विभक्ति का लोप हो जाता है; जैसे, वे उन्हें लेने को गये हैं। मैं इसी लडकी के मारने को तलवार लाया हूँ (गुटका॰)। हम आपसे कुछ माँगने आये हैं।
(अ) बोलचाल में बहुधा वाक्य की मुख्य क्रिया से बनी हुई क्रियार्थक संज्ञा को संप्रदान कारक इच्छा वा विवशता का अर्थ सूचित करता है, जैसे, जाने को तो मैं वहाॅ जा सकता हूँ। लिखने को तो वह यह लेख लिख सकता है।
(आ) "कहना" क्रियार्थक संज्ञा का संप्रदान-कारक प्रत्यक्षता अथवा उदाहरण के अर्थ में आता है; जैसे, कहने को तो उनके पास बहुत धन है; पर कर्ज भी बहुत है। उन्होंने कहने को मेरा काम कर दिया।
(इ) "होना" क्रिया के साथ विधेय में क्रियार्थक संज्ञा का संप्रदान-कारक तत्परता के अर्थ में आता है; जैसे, नौकर आने को है। वह जाने को हुआ।
६१८—निश्चय के अर्थ में क्रियार्थक संज्ञा विधेये नहीं के साथ संबंध-कारक में आती है। जैसे, वह वहाँ जाने की नहीं। मैं यहाॅ से नही उठने का।
[ सू॰—इन उदाहरणों में मुख्य क्रिया का बहुधा लोप रहता है, और क्रियार्थक संज्ञा के लिंग-वचन उद्देश्य के अनुसार होते हैं।]
६१९—क्रियार्थक संज्ञाओं का उपयोग कई एक संयुक्त क्रियाओं में होता है जिसका विवेचन यथास्थान हो चुका है (अं॰—४०५—६)।
(अ) क्रियार्थक संज्ञा का उपयोग परोक्षविधि के अर्थ में भी किया जाता है—(अं॰—३८६ । ४)।
(आ) दशा अथवा स्वभाव सूचित करने में बहुधा मुख्य वाक्य के साथ आनेवाले निषेधवाचक वाक्यों में क्रियार्थक संज्ञा का उपयोग होती है; जैसे, कुँअरजी का अनूप रूप क्या कहूँ? कुछ