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हँसते प्रसन्नतापूर्वक देवता के चरणों में अपने सारे सुखों का बलिदान कर देना ही परम धर्म है।

वह मरते-मरते बचा=वह लगभग मरने से बचा।

(ई) विरोध सूचित करने के लिए अपूर्ण क्रिया-द्योतक कृदंत के पश्चात् 'भी' अव्यय का योग किया जाता है, जैसे, मंगत-साधन करते भी जो विपत्ति आन पडे तो संतोष करना चाहिये; वह धर्म करते हुए भी, दैवयोग से, धनहीन हो गया; नौकर मरते-मरते भी सच न बोला।

(उ) अपूर्ण क्रियाद्योतक कृदंत का कर्त्ता कभी कर्त्ता-कारक में, कभी स्वतंत्र होकर, कभी सप्रदान-कारक में और कभी सबंध-कारक में आता है; जैसे, मुझे यह कहते आनंद होता है; दिन रहते यह काम हो जायगा, आपके होते कोई कठिनाई न होगी, उसने चलते हुए यह कहा।

(ऊ) पुनरुक्त अपूर्ण क्रियाद्योतक कृदंत का कर्त्ता कभी-कभी लुप्त रहती है, और तब यह कृदंत स्वतंत्र दशा में आता है, जैसे, होते-होते अपने अपने पते सबने खोले; चलते-चलते उन्हें एक गाँव मिला।

(ऋ) वर्त्तमानकालिक कृदंत और अपूर्ण क्रियाद्योतक कृदंत कभी-कभी समान अर्थ में आते हैं, जैसे, पार्वती को पुस्तक पढ़ते देखकर उसके शरीर में आग लग गई; (सर॰); तुम इस चक्रवर्ती की सेवा-येाग्य बालक और स्त्री के विकता देखकर टुकड़े टुकड़े क्यों नहीं हो जाते? (सत्य॰)।

[सू॰—वर्त्तमानकालिक कृदंत के पुल्लिंग-बहुवचन का रूप अपूर्ण क्रियाद्योतक कृदंत के समान हेाता है, पर दोनों के अर्थ और प्रयोग भिन्न-भिन्न हैं; जैसे, सडक पर शैव्या और वालक फिरते हुए दिखाई देते है। (वर्त्तमानकालिक कृदंत)। (सत्य॰)। तन रहते उत्साह दिखावेगा यह जीवन। (अपूर्ण क्रियाद्योतक कृदंत)। (स॰)।]

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