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का दुःख मिटकर चित्त नया सा हो गया है; (शकु॰), हानि होकर यो हमारी दुर्दशा होती नहीं; (भारत॰)। (अं—५११—घ)।

(ई) कभी-कभी स्वतंत्र कर्त्ता लुप्त रहता है और पूर्वकालिक कृदंत स्वतत्र दशा में आता है, जैसे, आगे जाकर एक गाॅव दिखाई दिया। समय पाकर उसे गर्भ रहा। सब मिलाकर इस पुस्तक में कोई दो सौ पृष्ठ हैं।

(उ) कभी-कभी पूर्वोक्त क्रिया पूर्वकालिक कृदंत में दुहराई जाती है, जैसे, वह उठा और उठकर बाहर गया, अर्क बहकर बर्त्तन में जमा होता है और जमा होकर जम जाता है।

(ऊ) बढ़ना, करना, हटना और होना क्रियाओं के पूर्वकालिक कृदंत कुछ विशेष अर्थों में भी आते हैं, जैसे, चित्र से बढ़कर चितेरे की बड़ाई कीजिए (सर॰), (अधिक, विशेषण)।

किला सडक से कुछ हटकर है, (दूर, कि॰ वि॰)।

वे शास्त्री करके प्रसिद्ध हैं (नाम से, स॰ सू॰)।

तुम ब्राह्मण होकर संस्कृत नहीं जानते (होने पर भी)।

(वे) एक बार जंगल मे होकर किसी गाँव को जाते थे (से)।

(ऋ) लेकर—यह पूर्वकालिक कृदंत काल, संख्या, अवस्था और स्थान को आरंभ सूचित करता है, जैसे, सबेरे से लेकर साँझ तक; पाँच से लेकर पचास तक। हिमालय से लेकर सेतुबंध-रामेश्वर तक; राजा से लेकर रंक तक। इन सब अर्थों में इस कृदंत का प्रयोग स्वतंत्र होता है।

[सू॰—बँगला 'लइया' के अनुकरण पर कभी-कभी हिंदी में 'लेकर' विवाद का कारण सूचित करता है, जैसे, आजकल धर्म को लेकर कई बघेडे होते हैं। यह प्राग शिष्ट-सम्मत नहीं है।]