पृष्ठ:हिंदी व्याकरण.pdf/५७१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(५५०)

दसवाँ अध्याय।

संयुक्त क्रियाएँ।

६२८—जिन अवधारण-बोधक संयुक्त क्रियाओं (बोलना, कहना, रोना, हँसना, आदि) के साथ अचानकता के अर्थ मे "आना" क्रिया आती है, उनके साथ बहुधा प्राणिवाचक कर्त्ता रहता है और वह संप्रदान-कारक में आता है; जैसे, उसकी बात सुनकर मुझे रो आया; क्रोध में मनुष्य को कुछ का कुछ कह आता है।

६२९—आवश्यकता-बोधक क्रियाओं का प्राणिवाचक उद्देश्य संप्रदान-कारक में आता है और अप्राणिवाचक उद्देश्य कर्ता-कारक मे रहता है; जैसे, मुझको जाना है; आपको बैठना पड़ेगा; हमें यह काम करना चाहिये; अभी बहुत काम होना है; घंटा बजना चाहिये। 'पड़ना' क्रिया के साथ बहुधा प्राणिवाचक कर्त्ता आता है।

६३०—'चाहिये' क्रिया में कर्त्ता वा कर्म के पुरुष और लिग के अनुसार कोई विकार नही होता; परंतु कर्म के वचन के अनुसार यह कभी-कभी बदल जाती है, जैसे, हमे सब काम करने चाहिये (परी॰)। यह प्रयोग सार्वत्रिक नही है।

(अ) सामान्य भूतकाल में 'चाहिये' के साथ 'था' क्रिया आती है, जो कर्म के अनुसार विकल्प से बदलती है; जैसे, मुझे उनकी सेवा करना चाहिये था अथवा करना चाहिये थी। यहाँ 'करना' क्रियार्थक संज्ञा का भी रूपांतर हो सकता है। (अं॰—४०५)।

६३१—देना अथवा पड़ना के योग से बनी हुई नामबोधक क्रियाओं का उद्देश्य संप्रदान-कारक में आता है; जैसे, मुझे शब्द सुनाई दिया; लड़के को दिखाई नहीं देता; उसे कम सुनाई पड़ता है। (अं॰—५३५)।