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६३४—आवश्यकता-बोधक सकर्मक क्रियाएँ (कर्त्तृवाच्य में) विकल्प से कर्मणि वा भावेप्रयोग में आती हैं; जैसे, मुझे ये दान ब्राह्मणों को देने हैं (शकु॰)। कहाॅ तक दस्तन्दाजी करना चाहिये (स्वा॰)। तुमको किताब लाना पड़ेगा, वा लाना पड़ेगी (अथवा लानी पड़ेगी।)

६३५—आवश्यकता-बोधक अकर्मक क्रियाओं को कर्त्ता प्राणिवाचक हो तो बहुधा भावेप्रयोग और अप्राणिवाचक हो तो बहुधा कर्त्तरिप्रयोग होता है; जैसे, आपके बैठना पड़ेगा , घंटी बजना थी।

६३६—अनुमति-बोधक क्रिया सदा सकर्मक रहती है और यदि उसकी मुख्य क्रिया भी सकर्मक हो तो संयुक्त क्रिया द्विकर्मक होती है; जैसे, उसे यहाँ बैठने दो; बाप ने लड़के को कच्चा फल न खाने दिया; हमने उसे चिट्ठी न लिखने दी।

(अ) यदि अनुमति-बोधक संयुक्त क्रिया में मुख्य क्रिया द्विकर्मक हो, तो उसके दोनों कर्मो के सिवा, सहायक क्रिया का कर्म भी वाक्य मे आ सकता है; जैसे, मुझे उसको यह बात बताने दीजिए।

६३७—क्रियार्थक संज्ञा से बनी हुई अवकाशबोधक क्रियाएँ बहुधा कर्त्तरिप्रयोग में आती हैं; जैसे, बातें न होने पाई; जल्दी के मारे मैं चिट्ठी न लिखने पाया। तात न देखन पायउँ तोंही (राम॰), इत्यादि।

(अ) पूर्वकालिक कृदंत के योग से बनी हुई सकर्मक अवकाशबोधक क्रिया बहुधा कर्मणि अथवा भावेप्रयोग में आती है; जैसे उसने अपना कथन पूरा न कर पाया था (सर॰), कुछ लोगों ने बड़ी कठिनाई से श्रीमान् को एक दृष्टि देख पाया, इत्यादि।

(आ) यदि ऊपर (अ में) लिखी क्रिया अकर्मक हो तो कर्त्तरिप्रयोग होता है; जैसे, बैकुंठ बाबू की बात पूरी न हो पाई थी (सर॰)।