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६३८—नीचे लिखी (सकर्मक वा अकर्मक ) संयुक्त क्रियाएँ (कर्त्तृवाच्य) में भूतकालिक कृदंत से बने हुए कालों में सदैव कर्त्तरिप्रयोग में आती हैं।

(१) आरंभ-बोधक—लड़का पढ़ने लगा। लड़कियाँ काम करने लगीं।

(२) नित्यताबोधक—हम बातें करते रहे। वह मुझे बुलाता रहा है।

(३) अभ्यासबोधक—यों वह दीन दुःखिनी वाला रोया की दुख में उस रात (हिं॰ प्र॰)। बारह बरस दिल्ली रहे, पर भाड ही झोंका किये (भारत॰)।

(४) शक्तिबोधक—लड़की काम न कर सकी, हम उसकी बात कठिनाई से समझ सके थे।

(५) पूर्णताबोधक—नौकर कोठा झाड़ चुका। स्त्री रसोई बना चुकी है।

(६) वे नामबोधक क्रियाएँ जो देना वा पडना के योग से बनती हैं, जैसे, चोर थोडी दूरी पर दिखाई दिया, वह शब्द ही ठीक-ठीक न सुनाई पड़ा।


ग्यारहवाँ अध्याय।

अव्यय।

६४०—संबंधवाचक क्रिया-विशेषण क्रिया की विशेषता बताने के सिवा वाक्यों को भी जोड़ते हैं; जैसे, जहाँ न जाय रवि तहाँ जाय कवि, जब-तक जीना, तब-तक सोना।

६४१—'जब-तक' क्रिया-विशेषण बहुधा संभाव्य भविष्यत् तथा दूसरे कालों के साथ आता है और क्रिया के पूर्व निषेधवाचक अव्यय