लाया जाता है; जैसे, जब तक मैं न आऊँ तब तक तुम यहाँ ठहरना; जब तक मैंने उनसे रुपये की बात नहीं निकाली, तब तक वे मेरे यहाॅ आते रहे।
(अ) जब 'जहाॅ' का अर्थ काल वा अवस्था का होता है तब उसके साथ बहुधा अपूर्ण-भूतकाल आता है; जैसे, इस काम में जहाॅ पहले दिन लगते थे, वहाँ अब घंटे लगते हैं, जहाँ वह मुझसे सीखते थे, वहाॅ अब मुझे सिखाते हैं।
६४२—न, नहीं, मत। "न" सामान्य-वर्त्तमान, अपुर्ण-भूत और आसन्न-भूत (पूर्ण-वर्त्तमान) कालों को छोड़कर बहुधा अन्य कालों में आता है। 'नही' संभाव्य-भविष्यत्, क्रियार्थक संज्ञा तथा दूसरे कृदंत, विधि और संकेतार्थ कालों में बहुधा नहीं आता। 'मत' केवल विधिकाल में आता है। उदा॰—लड़का वहाँ न गया; नौकर कभी न आवेगा; मेरे साथ कोई न रहे; हम कही ठहर नहीं सकते; "बदला" न लेना शत्रु से कैसा अधर्म अनर्थ है!" (क॰ क॰)। उसका धर्म मत छुड़ाओ (सत्य॰)।
६४३–संयोजक समुच्चय-बोधक समान शब्द-भेद, संज्ञाओ के समान कारक और क्रियाओं के समान अर्थ और कालों को जोड़ते हैं; जैसे, आलू, गोभी और बैंगन की तरकारी और दाल-भात। हड़ताल वास्तव में, मजदूरों के हाथ में एक बड़ा ही विकट और कार्य सिद्ध करानेवाला हथियार है। उन लोगों ने इसका खूब ही स्वागत किया होगा और बड़े चैन से दिन काटे हांगे।
(अ) यदि वाक्य की क्रियाओं का संबंध भिन्न-भिन्न कालों से हो तो वे भिन्न-भिन्न कालों में रहकर भी संयोजक समुच्चय-बोधक के द्वारा जोड़ी जा सकती हैं; जैसे, मैं इस घर में रहा हूँ, रहता हूँ और रहूँगा; वह सबेरे आया था और शाम को चला जायगा।