के बीच में आते हैं; और जब जुड़े हुए शब्द दो से अधिक होते हैं तब समुच्चय-बोधक अंतिम शब्द के पूर्व अथवा जोड़े से आये हुए शब्दों के मध्य में रखे जाते हैं; जैसे, युवक और युवती केवल एक दूसरे की ओर देखने में मग्न थे; मैं लंडन, न्यूयार्क और टोकियो मे भारतीय यात्रियों, विद्यार्थियों और व्यवसाइयों के लिए भारत-भवन बनवाऊँगा। दोनों मिलकर एक गीत गाओ यह एक ही को गाने दो या दोनों मौन धारण करो, या आओ तीनों मिलकर गावें।
६५०—संज्ञा और उसकी विभक्ति अथवा संबंध–सूचक अव्यय के बीच में कोई वाक्य या क्रिया-विशेषण वाक्यांश नहीं आ सकता, क्योंकि, इससे शब्दों का संबंध टूट जाता है, और वाक्य मे दुर्बोधता आ जाती है; जैसे, फैली साहब के बाग (जिसका वर्णन किसी दूसरे लेख में किया जायगा) की झलक लेते पथिक आगे बढ़ता है (लक्ष्मी॰)।
बारहवाँ अध्याय
अध्याहार।
६५१—कभी-कभी वाक्य में संक्षेप अथवा गौरव लाने के लिए कुछ ऐसे शब्द छोड़ दिये जाते हैं जो वाक्य के अर्थ पर से सहज ही जाने अथवा समझे जा सकते हैं। भाषा के इस व्यवहार को अध्याहार कहते हैं। उदा॰—मैं तेरी एक भी () न सुनूॅगा। दूर के ढोल सुहावने ()। कोई-कोई जंतु तैरते फिरते हैं, जैसे मछलियाॅ ()।
६५२—अध्याहार दो प्रकार का होता है—(१)पुर्ण (२)अपुर्ण।