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(ओ) "यदि" और "यद्यपि" और उनके नित्य-संबंधी समुच्चय- बोधकों का भी कभी कभी लोप होता है, जैसे, () आप बुरा न मानें तो एक बात कहूँ, हम जो ऐसे दुख में हैं () हमें कोई छुडानेवाला चाहिये, इत्यादि।

(औ) "और", "इसलिए", आदि समुच्चय-बोधक भी कभी-कभी लुप्त रहते हैं, जैसे, ताँबा खदान से निकलता है; इसका रंग लाल होता है। मेरे भक्तों पर भीडे पडी है; इस समय चलकर उनकी चिता मेटा चाहिये।

६५४—अपूर्ण अध्याहार नीचे लिखे स्थानों में होता है—

(अ) एक वाक्य में कर्त्ता का उल्लेख कर दूसरे वाक्य में बहुधा उसका अध्याहार कर देते हैं, जैसे, हम ले रघुवंशी कन्या नहीं पालते, और () कभी किसी के साले-ससुर नही कहलाते। आप अपने-अपने लड़के को भेजें और () व्यय आदि की कुछ चिन्ता न करे।

(आ) यदि एक वाक्य मे सप्रत्यय कर्त्ताकारक आवे और दूसरे में अप्रत्यय, तो पिछले कर्त्ता का अध्याहार कर दिया जाता है; जैसे, मैं बहुत देश-देशतांरों में घूम चुका हूॅ, पर () ऐसी अबादी कहीं नहीं देखी (विचित्र॰), मैंने यह पद त्याग दिया और () एक दूसरे स्थान में जाकर धर्म-ग्रथों का अध्ययन करने लगा (सर॰)।

( इ ) यदि अनेक विशेषणों का एक ही विशेष्य हो और उससे एकवचन का बोध हो, तो उसका एक ही बार उल्लेख होता है; जैसे, काली और नीली स्याही । गोल और सुंदर चेहरा।

( ई ) यदि एक ही क्रिया का अन्वय कई उद्देश्यों के साथ हो तो उसका उल्लेख केवल एक ही बार होता है, जैसे, राजा, रानी