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शब्द साधारण अथवा विकृत रूप में आते हैं; जैसे, इसके रंग, रूप और गुण में भेद हो चला (नागरी॰)। वे फर्श, कुर्सी और कोचों पर उठते बैठते हैं (विद्या॰)। गायों, भैंसों, बकरियों, भेड़ों आदि की नसल सुधारना (सर॰)।

(आ) कर्म, करण और अधिकरण कारकों के प्रत्ययों का बहुधा लोप होता है, जैसे, पानी लाओ, यात्री वृक्ष के सहारे खड़ा हो गया। लड़का किस दिन आयगा?

(इ) सामान्य भविष्यत्-काल का प्रत्यय कभी-कभी दो पास-पास आनेवाली क्रियाओं में से बहुधा पिछली क्रिया ही में जोड़ा जाता है, जैसे, वहाँ हम लोग कुछ खाए-पिएँगे। क्या यहाँ कोई आय-जायगा नहीं?

(ई) कर, वाला, मय, पूर्वक, आदि प्रत्ययों का भी कभी-कभी अध्याहार होता है, जैसे, देख और सुनकर, आने और जानेवाले, जल अथवा थलमय प्रदेश, भक्ति तथा प्रेम-पूर्वक।

[सू॰—अध्याहार के अन्यान्य उदाहरण तत्संबधी नियमों के साथ यथा स्थान दिये गये है।]


तेरहवाँ अध्याय।

पदक्रम।

६५६—रूपांतरशील भाषाओं में पदक्रम पर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता, क्योंकि उनमें बहुधा शब्दों के रूपों ही से उनका अर्थ और संबंध सूचित हो जाता है। पर अल्पविकृत भाषाओं में पदक्रम का अधिक महत्त्व है। संस्कृत पहले प्रकार की और अँगरेजी दूसरे प्रकार की भाषा है। हिंदी-भाषा संस्कृत से निकली है; इसलिए इसमें पदक्रम का महत्त्व अँगरेजी के समान नहीं है।

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