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को पद-परिचय[१] कहते हैं। यह (पद-परिचय) व्याकरण-सबंधी ज्ञान की परीक्षा और उस विद्या के सिद्धांतों का व्यावहारिक उपयेाग है।

६७४—प्रत्येक शब्द-भेद की व्याख्या में जो-जो वर्णन आवश्यक है वह नीचे लिखा जाता है—

(१) संज्ञा—प्रकार, लिंग, वचन, कारक, सबंध।

(२) सर्वनाम—प्रकार, प्रतिनिहित संज्ञा, लिंग, वचन, कारक, संबंध।

(३) विशेषण—प्रकार, विशेष्य, लिंग, वचन, विकार (हो तो), अन्य संबध।

(४) क्रिया—प्रकार, वाच्य, अर्थ, काल, पुरुष, लिंग, वचन, प्रयोग।

(५) क्रियाविशेषण—प्रकार, विशेष्य, विकार (हो तो)।

(६) समुच्चय-बोधक—प्रकार, अन्वित शब्द, वाक्यांश अथवा वाक्य।

(७) सम्बन्ध-सूचक—प्रकार, विकार (हो तो), संबंध।

(८) विस्मयादिबोधक—प्रकार, संबंध (हो तो)।


  1. कोई-कोई इसे पद-निर्देश और कोई-कोई व्याख्या कहते हैं। राजा शिवप्रसाद ने इसका नाम अन्वय लिखा है, और इसका वर्णन फारसी पद्धति पर किया है जिसका उदाहरण यहाँ दिया जाता है—
    सनदबाद जहाजी की दूसरी यात्रा का वर्णन। सनदबाद विशेष्य। जहाजी विशेषण। विशेष्य विशेषण मिलकर संबंध। की संबध का चिह्न। दूसरी विशेषण। यात्रा विशेष्य। विशेष्य विशेषण मिलकर संबंधवान्। संबध-संबंधवान् मिलकर संबंध। का संबंध का चिह्न। वर्णन संबंधवान्। संबंध-संबंधवान् मिलकर कर्त्ता। होता है क्रिया गुप्त।
    इस पद्धति में एक बड़ा दोष यह है कि इसमें शब्दों के रूपों का ठीक-ठीक वर्णन नहीं होता।