पृष्ठ:हिंदी व्याकरण.pdf/६

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पाया है। पर इन सब बातो पर यथार्थं सम्मति देने के अधिकारी विशेषज्ञ ही हैं।

कुछ लोगो का मत है कि हिंदी के "सर्वांग-पूर्ण "व्याकरण मे, मूल विषय के साथ साथ, साहित्य का इतिहास,,छंदा-निरूपण, रस, अलकार, कहावतें, मुहावरे, आदि विषय रहने चाहिए। यद्यपि ये सब विषय भाषा-ज्ञान की पूर्णता के लिए आवश्यक हैं तेा भी ये सब स्वतन्त्र विषय हैं और व्याकरण से इनका कोई प्रत्यक्ष संबंध नहींहै। किसी भी भाषा का "सर्वांग-पूर्ण "व्याकरण वही है जिसमे उस भाषा के सब शिष्ट रूपों और प्रयोग का पूर्ण विवेचन किया जाय और उनमें यथा संभव स्थिरता लाई जाय । हमारे पूर्वजों ने व्याकरण का यही उद्देश्य माना है। और हमने इसी पिछली दृष्टि से इस पुस्तक को सर्वांग-पूर्ण बनाने का प्रयत्न किया है । यद्यपि यह ग्रंथ पूर्णतया सर्वांग-पूर्ण नहीं कहा जा सकता, क्येांकि इतने व्यापक विषय में विवेचन की कठिनाई और भाषा की अस्थिरता तथा लेखक की भ्रांति और अल्पज्ञता के कारण कई बातो का छूट जाना संभव है, तथापि हमे यह कहने में कुछ भी सकोच नहीं है कि इस पुस्तक से आधुनिक हिंदी के स्वरूप का प्राय पूरा पता लग सकता है। |

यह व्याकरण, अधिकाश में, अँगरेजी व्याकरण के ढंग पर लिखा गया है । इस प्रणाली के अनुसरण का मुख्य कारण यह है कि हिंदी में प्रारंभ ही से इसी प्रणाली का उपयोग किया गया है। और आज तक किसी लेखक ने संस्कृत प्रणाली का कोई पूर्ण आदर्श उपस्थित नहीं किया। वर्तमान प्रणाली के प्रचार का दूसरा कारण यह है कि इसमें स्पष्टता और सरलता' विशेष रूप से पाई जाती है

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  • उन्हने सावधानता-पूर्वक अपनी भापा के विषय का अवलोकन किया | और जे सिद्वातं उन्हें मिले उनकी स्थापना की ।-डा० भाण्ढारकर ।