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जैसे, धर्म, सर्व, अर्थ, । यदि रकार किसी व्यंजन के पीछे आता है तो उसका रूप दो प्रकार का होता है-

( अ ) खड़ी पाई वाले व्यंजनों के नीचे रकार इस रूप (-) से लिखा जाता है, जैसे चक्र, भद्र, हस्व, वज्र ।

(आ) दूसरे व्यजनों के नीचे उसका यह रूप (^ ) होता है। जैसे, राष्ट्र, त्रिपुंडृ, कृच्छ ।

[ सूचना—ब्रजभाषा में बहुधा र् + य का रूप से होता है। जैसे, मारयो, हरियो । ] ।

२६–क् और त मिलकर तक् और त् और त मिलकर त होता  है।

२७-ड् ,ण , न् , म् , अपने ही वर्ग के व्यंजनों से मिल सकते हैं, पर उनके बदले में विकल्प से अनुस्वार आ सकता है, जैसे, गङ्गा=गंगा, चञ्चल = चंचल, पण्डित = पंडित,दन्त=दंत, कम्प = कंप ।

कई शब्दों में इस नियम का भंग होता है, जैसे, वाड्मय मृण्मय, धन्वन्तरि, सम्राट् , उन्हें, तुम्हें ।

२८–हकार से मिलनेवाले व्यंजन, कभी कभी, भूल से उसके पूर्व लिख दिये जाते हैं, जैसे, चिन्ह ( चिह्न), ब्रम्ह ( ब्रह्म ),आव्हान ( आह्वान ), आल्हाद (आह्लाद ) इत्यादि ।

२९--साधारण व्यंजनों के समान संयुक्त व्यंजनों में भी स्वर जोड़कर बारहखड़ी बनाते हैं, जैसे, क, का, क्रि, क्री,कु, क्रू, क्रे,कै, क्रो, क्रौ, क्रं, क्रः । (देखो १४ वां अंक )



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  • हिंदी में बहुधा अनुनासिक (°) के बदले में भी अनुस्वार आता है,जैसे, हँसना= हंसना, पाँच = पांच । ( देखो ५०वां अंक )।