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के केवल दोही मुख्य भाग माने जाते हैं―उद्देश्य और विधेय। व्याकरण में कर्म को विधेय से भिन्न मानते हैं, परंतु न्यायशास्त्र में वह विधेय के अंतर्गत ही माना जाता है। यहाँ यह कह देना आवश्यक जान पड़ता है कि उद्देश्य और कर्त्ता तथा विधेय और क्रिया समानार्थक शब्द नहीं हैं; यद्यपि व्याकरण के कर्त्ता और क्रिया बहुधा न्यायशास्त्र के क्रमश: उद्देश्य और विधेय होते हैं।


दूसरा अध्याय।

वाक्य और वाक्यों में भेद।

६७७―एक विचार पुर्णता से प्रगट करनेवाले शब्द-समूह को वाक्य कहते हैं। (अं०―८९―अ)।

६७८―वाक्य के मुख्य दो अवयव होते हैं―(१) उद्देश्य और (२) विधेय।

(अ) जिस वस्तु के विषय में कुछ कहा जाता है उसे सूचित करनेवाले शब्दो के उद्देश्य कहते हैं, जैसे, आत्मा अमर है, घोड़ा दौड़ रही है, राम ने रावण को मारा, इन वाक्यो में आत्मा, घोडा, और राम ने उद्देश्य हैं, क्योंकि इनके विषय में कुछ कहा गया है अर्थात् विधान किया गया है।

(अ) उद्देश्य के विषय में जो विधान किया जाता है उसे सूचित करनेवाले शब्दों को विधेय कहते हैं, जैसे ऊपर लिखे वाक्यों में आत्मा, घोड़ा, राम ने, इन उद्देश्यों के विषय में क्रमशः अमर है, दौड़ रहा है, रावण को मारा, ये विधान किये गये हैं, इसलिए इन्हें विधेय कहते हैं।

६७९―उद्देश्य और विधेय प्रत्येक वाक्य में बहुधा स्पष्ट रहते हैं, परंतु भाववाच्य में उद्देश्य प्रायः क्रिया ही में सम्मिलित रहता