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विधेय कहते हैं। उद्देश्य बहुधा कर्त्ताकारक में रहता है; पर कभी-कभी वह दूसरे कारकों में भी आता है। जैसे―

(१) प्रधान कर्त्ता-कारक―लड़का दौड़ता है। स्त्री कपड़ा सीती है। बंदर पेड़ पर चढ़ रहे थे।

(२) अप्रधान कर्त्ता-कारक―मैंने लड़के का बुलाया। सिपाही ने चोर को पकड़ा। हमने अभी नहाया है।

(३) अप्रत्यये कर्मकारक (कर्मवाच्य मे)―चिट्ठी लिखी जायगी, दवाई बनाई गई है।

(४) सप्रत्यय कर्म-कारक―नौकर को वहाँ भेजा जायगा। शास्त्री जी को सभापति बनाया गया। (अं०―५२०―ड)

(५) करण-कारक (भाववाच्य में, किसी किसी के मतानुसार)― लड़के से चला नहीं जाता। मुझसे बोलते नहीं बनता। (अं०-६७९)।

(६) संप्रदान-कारक―आपको ऐसा न कहना चाहिये था। मुझे वहाँ जाना था। काजी को यही हुक्म देते बना।

६८३―साधारण उद्देश्य में संज्ञा अथवा संज्ञा के समान उपयोग में आनेवाले दूसरे शब्द आते हैं; जैसे,

(अ) संज्ञा―हवा चलती है; लड़का आया।

(आ) सर्वनाम―तुम पढ़ते थे, वे जावेगे।

(इ) विशेषण―विद्वान् सब जगह पूजा जाता है। मरता क्या नहीं करता।

(ई) क्रिया-विशेषण (क्वचित्)―(जिनका) भीतर बाहर एक सा हो (सत्य०)।

(उ) वाक्यांश―वहाँ जाना अच्छा नही है। झूठ बोलना पाप है। खेत का खेत सूख गया।