(ड) “होना” क्रिया के वर्त्तमानकाल के रूप कभी-कभी लुप्त रहते हैं, जैसे, मुझे इनसे क्या प्रयोजन (है)। वह अब आने का नहीं (है)।
६८६―कर्म में उद्देश्य के समान संज्ञा अथवा संज्ञा के समान उपयोग में आनेवाला कोई दूसरा शब्द आता है―
(क) संज्ञा―माली फूल तोड़ता है। सौदागर ने घोड़े बेचे।
(ख) सर्वनाम―वह आदमी मुझे बुलाता है। मैंने उसको नहीं देखा।
(ग) विशेषण―दोनों को मत सताओ। उसने डूबते को बचाया।
(घ) क्रिया-विशेषण (क्वचित्)―वह आजकल कर रहा है।
(ड) वाक्याश―वह खेत नापना सीखता है। मैं आप का इस तरह बातें बनाना नही सुनूँगा। बकरियों ने खेत का खेत चर लिया।
(च) संज्ञा के समान उपयोग में आनेवाला कोई भी शब्द― तुलसीदास ने रामायण में ‘कि’ नहीं लिखी।
[सू०―मुख्य कर्म के स्थान में एक वाक्य भी आ सकता है; परंतु उसके कारण संपूर्ण वाक्ये मिश्र हो जाता है। (अ०―७०२)।]
६८७―गौण कर्म में भी ऊपर लिखे शब्द पाये जाते हैं; जैसे,
(क) संज्ञा―यज्ञदत्त देवदत्त को व्याकरण पढ़ाता है।
(ख) सर्वनाम―उसे यह कपड़ा पहिनाओ।
(ग) विशेषण―वे भूखों के भोजन और नंगों को वस्त्र देते हैं।