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(घ) क्रिया-विशेषण (क्वचित्)―यह बात आपने वहाँ (= उनका) तो नहीं बताई?

(ङ) वाक्यांश―आपके ऐसा कहने को मैं कुछ भी मान नहीं देता।

(च) संज्ञा के समान उपयोग में आनेवाला कोई भी शब्द― उनकी ‘हॉ’ का मैं मान देता हूँ।

६८८―मुख्य कर्म अप्रत्यय कर्म-कारक मे रहता है और गौण कर्म बहुधा संप्रदान-कारक में आता है; परंतु कहना, बोलना, पूछना, द्विकर्मक क्रियाओं को गैरण कर्म करण-कारक में आता है। उदा०―तुम क्या चाहते हो? मैंने उसे कहानी सुनाई। बाप लड़के को गिनती सिखाता है। तुमसे यह किसने कहा?

६८९―कर्मवाच्य में द्विकर्मक क्रियाओ का मुख्य कर्म उद्देश्य हो जाता है और वह कर्त्ताकारक में आता है; परंतु गौण कर्म ज्यों का त्यों बना रहता है; जैसे, ब्राह्मण को दान दिया गया, मुझ से वह बात पूछी जायगी।

६९०―करना, बनाना, समझना, मानना, पाना, कहना, ठहराना आदि सकर्मक क्रियाओं के कर्ता-वाच्य मे कर्म के साथ एक और शब्द जाता है जिसे कर्म-पूर्ति कहते हैं; जैसे, ईश्वर राई का पर्वत करता है। मैंने मिट्टी की सेना बनाया।

कर्म-पूर्त्ति में नीचे लिखे शब्द आते हैं―

(क) संज्ञा―अहल्या ने गंगाधर को दीवान बनाया।

(ख) विशेषण―मैंने उसे सावधान किया।

(ग) संबंधकारक―वे मुझे घर का समझते हैं।

(घ) कृदंत अव्यय―उन्हेंने उसे चोरी करते हुए पकड़ा।

६९१―कुछ अकर्मक क्रियाओं के साथ उन्होके धातु से बना हुआ कर्म आता है जिसे सजातीय कर्म कहते हैं; जैसे, वह अच्छी