३२--वर्गों के उच्चारण की रीति को प्रयत्न कहते हैं। ध्वनि उत्पन्न होने के पहले वार्गिद्रिय की क्रिया को आभ्यंतर प्रयत्न कहते हैं। और ध्वनि के अंत की क्रिया को बाह्य प्रयत्न कहते हैं।
| ३३-आभ्यंतर प्रयत्न के अनुसार वर्षों के मुख्य चार भेद हैं।
। (१) विवृत---इनके उच्चारण में वागिंद्रिय खुली रहती है। | स्वरों का प्रयत्न विवृत कहाता है ।
(२) स्पृष्ट-इनके उच्चारण में वागिंद्रिय का द्वार बंद । | रहता है। ‘क’ से लेकर 'म' तक २५ व्यंजनों को स्पर्श वर्ण । कहते हैं ।
(३) ईषत्-चिवृत--इनके उच्चारण में यागिद्रिय कुछ खुली रहती है । इस भेद में य, र, ल, व, हैं। इनको | अंतस्थ वर्ण भी कहते हैं, क्योंकि इनका उच्चारण स्वर व्यंजनों का मध्यवर्ती है।
(४) ईषत्-स्पृष्ट-इनका उच्चारण वागिद्रिय के कुछ बंद रहने से होता है—श, ष, स, ह, । इन वर्गों के उच्चारण मे एक प्रकार | का घर्पण होता है, इसलिए इन्हें ऊष्म वर्ण भी कहते हैं ।
| ३४-- बाह्य-प्रयत्न के अनुसार वर्षों के मुख्य दो भेद हैं—(१) | अघोष (२) घोष ।।
( १ ) अघोष, वर्गों के उच्चारण में केवल श्वास का उपयोग होता है, उनके उन्धारण में घोप अर्थात् नाद नहीं होता ।
(२) घोष वर्षों के उच्चारण में केवल नाद का उपयोग होता है। अघोप वर्णक, ख, च, छ, ट, ठ, त, थ, प, फ और श, ष, स । घोप वर्ण-शेष व्यंजन और सब स्वर ।
[ सूचना---बाह्य प्रयत्न के अनुसार केवल व्यंजनों के जो भेद हैं वे आगे | दिये जायँगे । ( देखो ४४वाँ अंक ) ।]