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७०५―विशेषय-उपवाक्य संबंध-वाचक सर्वनाम “जो” से आरंभ होता है और मुख्य उपवाक्य में उसका नित्य-सबंधी ‘सो’ वा ‘वह’ आता है। कभी-कभी जो और सो से बने हुए जैसा, जितना और वैसा, उतना भी आते हैं। इनमें से पहले दो विशेषण-उपवाक्य में और पिछले दो मुख्य उपवाक्य मे रहते हैं। उदा०―जिसकी लाठी उसकी भैंस। जैसा देश वैसा भेष।इत्यादि।

(क) विशेषण―उपवाक्य में कभी-कभी संबंधवाचक क्रिया-विशे- षण―जब, जहाँ, जैसे और जितने भी आते हैं, यथा, वे उन देशों में पल सकते हैं जहाँ उनकी जाति का पहले नाम-मात्र न था।

जैसे जाय भेहि भ्रम भारी।
करहु सो यतन विवेक विचारी॥

इन उदाहरणों में जहाँ = जिस स्थान में, और जैसे = जिस यत से।

[सू०―इन संयोजक शब्दों के साध कभी कभी “कि” अव्यय (फारसी-रचना के अनुकरण पर) लगा दिया जाता है, जैसे, मैने एक सपना देता है कि जिसके आगे अब यह सारा सटराग सपना मालूम होता है (गुटका०), ऐसी नहीं जैसी कि अब प्रतिकूलता है हाल में (भारत०)।]

(ख) कभी-कभी विशेषण-उपवाक्य में एक से अधिक संबंध- वाचक सर्वनाम (वा विशेषण) आते हैं; और मुख्य उपवाक्य में उनमें से प्रत्येक के नित्य-सबंधी शब्द आते हैं, जैसे, जो जैसी संगति करै सो तैसो फल पाय। जो जितना माँगता उसको उतना दिया जाता है।

(ग) कभी-कभी सबंधवाचक और नित्य-सवंधी शब्दों में से किसी एक प्रकार के शब्दों की (अथवा पूरे उपवाक्ये का) लोप हो जाता है, जैसे, हुआ सो हुआ। जो हो। जो आता। सच हो सो कह दो।