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साथ निश्चयवाचक सर्वनाम रक्खा जा सकता है। ऐसे उपवाक्यों के विशेषण-उपवाक्य न मानकर समानाधिकरण उपवाक्य मानना चाहिये।

[सू०―इस रचना के संबंध में भी बहुधा यह संदेह हो सकता है कि यह अँगरेजी २चना का अनुकरण है; पर सबसे प्राचीन गद्य-ग्रंथ प्रेमसागर में भी यह रचना है; जैसे, (वे) सब धर्मों से उत्तम धर्म कहेंगे, जिसमे तू जन्म-मरण से छूट भवसागर पार होगा। प्राचीन कविता में भी इस रचना के के उदाहरण पाये जाते हैं; जैसे―

रामनाम के कल्प-तरु कलि कल्याण-निवास।
जो सुमिरत भये भाग ते तुलसी तुलसीदास॥

इन उदाहरणो से सिद्ध होता है कि (अँगरेजी के समान) हिंदी में विशेषण-उपवाक्य दो अर्थों में आता है―मर्यादक और समानाधिकरण, और पिछले अर्थ में उसे विशेषण-उपवाक्य नाम देना अशुद्ध है।]

क्रिया-विशेषण-उपवाक्य।

७०६―क्रिया-विशेषण-उपवाक्य मुख्य उपवाक्य की क्रिया की विशेषता बतलाता है। जिस प्रकार क्रिया-विशेषण विधेय को बढ़ाने में उसका काल, स्थान, रीति, परिमाण, कारण और फल प्रकाशित करता है, उसी प्रकार क्रिया-विशेषण-उपवाक्य मुख्य छपवाक्य के विधेय का अर्थ इन्हीं अवस्थाओं में बढ़ाता है। क्रिया-विशेषण के समान क्रिया-विशेष-उपवाक्य मुख्य उपवाक्य के विशेषण अथवा क्रिया-विशेषण की विशेषता बताता है; जैसे―

क्रिया की विशेषता―“जो आप आज्ञा देवे,” तो हम जन्मभूमि देख आवे। (=आपके आज्ञा देने पर)।

विशेषण की विशेषता―“इन नदियों का पानी इतनी ऊँचा पहुँच जाता है कि बड़े-बड़े पूर हो जाते हैं।” (=बड़े-बड़े पूर आने के योग्य)।