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३५–उत्पत्ति के अनुसार स्वरों के दो भेद हैं—(१) मूलस्वर;

(२) संधिस्वर।

(१) जिन स्वरों की उत्पत्ति किसी दूसरे स्वरों से नहीं है, उन्हें | मूलस्वर ( वा ह्रस्व ) कहते हैं। वे चार हैं-अ, इ, उ, और ऋ। (२) मूल-स्वरों के मेल से बने हुए स्वर संधि-स्वर कहलाते हैं, जैसे, आ, ई, ए, ऐ, ओ, औ।

| ३६–संधि-स्वरों के दो उपभेद हैं---

| (१) दीर्घ और (२) संयुक्त ।

( १ ) किसी एक मूल स्वर में उसी मूल स्वर के मिलाने से जो स्वर उत्पन्न होता है, उसे दीर्घ कहते हैं; जैसे, अ+ = आ, इ+इ=ई, उ+ उ = ऊ, अर्थात् आ, ई, ऊ, दीर्घ स्वर हैं।

[ सूचना--- + इ = प्रह, यह दीर्घ स्वर हिंदी में नहीं है । ]

(२) भिन्न-भिन्न स्वरों के मेल से जो स्वर उत्पन्न होता है उसे संयुक्त स्वर कहते हैं; जैसे, अ +इ=ए, अ+उ=ओ, आ +ए=ऐ, आ +ओ =औ ।।

३७उच्चारण के काल-मान के अनुसार स्वरों के दो भेद किये जाते | हैं-लघु और गुरु । उच्चारण के काल-मान को मात्रा कहते हैं। | जिसे स्वर के उच्चारण में एक मात्रा लगती है उसे लघु स्वर कहते हैं; जैसे, अ, इ, उ, ऋ, । जिस स्वर के उच्चारण में दो मात्राएँ लगती हैं। उसे गुरु स्वर कहते हैं; जैसे, आ, ई, ए, ऐ, ओ, औ।

[ सूचना १-संच मूल स्वर लघु और सब संधिं-स्वर गुरु हैं ।]

[ सूचना ३–संस्कृत में प्लुत नाम से स्वरों का एक तीसरा भेद माना जाता है; पर हिंदी में उसका उपयोग नहीं होता। ‘प्लुत' शब्द का अर्थ है।]

ॐ हिंदी में ‘मात्रा' शब्द के दो अर्थ हैं-एक, स्वरों को रूप (देखो ९ वाँ | अंक ), दूसरा काल-मान ।