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(२) स्थानवाचक क्रियाविशेषण-उपवाक्य।

७०९―स्थानवाचक क्रियाविशेषण-उपवाक्य मुख्य उपवाक्य के संबंध से नीचे लिखी अवस्थाँए सूचित करता है―

(क) स्थिति―“जहाँ अभी समुद्र है” वहाँ किसी समय जंगल था। “जहाँ सुमति” तहाँ संपति नाना।

(ख) गति का आरंभ―ये लेाग भी वही से आये, “जहाँ से आर्य लोग आये थे”। “जहाँ से शब्द आता था।” वहाँ से एक सवार आता हुआ दिखाई दिया।

(ग) गति का अन्त–“जहाँ तुम गये थे” वहाँ गणेश भी गया था। मैं तुम्हे वहाँ भेजूँगा जहाँ कंस गया है”।

७१०―स्थानवाचक क्रियाविशेषण उपवाक्य मे जहाँ, जहाँ से, जिधर आते हैं और मुख्य उपवाक्य में उनके नित्य-संबंधी, तहाँ (वहाँ), वहाँ से और उधर रहते हैं।

[सू०―(१) “जहीं” का अर्थ कभी-कभी कालवाचक होता है, जैसे, “यात्रा में जहाँ पहले दिन लगते थे” वहाँ अब घंटे लगते है।

(२) “जहाँ तक” का अर्थ बहुधा परिमाणवाचक होता है; जैसे, “जहाँ तक हो सके” टेढी गलियाँ सीधी कर दी जावें। (अं०-७१३)।]

(३) रीतिवाचक क्रियाविशेषण-उपवाक्य।

७११―रीतिवाचक क्रियाविशेषण-उपवाक्य से समता और विषमता का अर्थ पाया जाता है; जैसे, दोनों वीर ऐसे टूटे, “जैसे हाथियों के यूथ पर सिंह टूटे”। जैसे प्राणी आहार से जीते हैं” वैसे ही पेड़ खाद से बढ़ते हैं। “जैसे आप बोलते हैं” वैसे मैं नहीं बोल सकता।

अस कहि कुटिल भई उठि ठाढ़ी।
मानहु रोष-तरंगिनि बाढ़ी॥