पृष्ठ:हिंदी व्याकरण.pdf/६३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(६११)

 

७१२―रीतिवाचक क्रियाविशेषण-उपवाक्य जैसे, ज्या (कविता में), ‘मानो’ से आरंभ होते हैं और मुख्य उपवाक्य में उनक नित्य- संबंधी ‘वैसे’ (ऐसे), कैस, त्यों आते हैं।

(४) परिमाणवाचक क्रियाविशेषण-उपवाक्य।

७१३―परिमाणवाचक क्रियाविशेषण-उपवाक्य से अधिकता, तुल्यता, न्यूनता, अनुपात आदि का बोध होता है, जैसे, ज्यो-ज्यो भीजै कामरी, त्यों-त्यों भारी होय। “जैसे-जैसे आमदनी बढती है वैसे-वैसे खर्च भी बढ़ता जाता है”। “जहाँ तक हो सके,” यह काम अवश्य करना। “जितनी दूर यह रहेगा” उतनी ही कार्य-सिद्धि होगी।

७१४―परिमाणवाचक क्रियाविशेषण-उपवाक्य में ज्यों-ज्यों, जैसे-जैसे, जहाँ-तक, जितना, कि आते हैं और मुख्य उपवाक्य में उनके नित्य सबको वैसे-वैसे (तैसे-तैसे), त्यों-त्यों, वहाँ-तक, उतना, यहाँ तक रहते हैं।

७१५―ऊपर लिखे चार प्रकार के उपवाक्यों में जो सबंधवाचक क्रिया-विशेषण और उनके नित्य-संबंधों शब्द आते हैं उनमें से कभी-कभी किसी एक प्रकार के शब्दों का लोप हो जाता है, जैसे जब तक मर्म न जाने, वैद्य औषध नहीं दे सकता। बारह बर्ष हुए जब मैं माइलन का राजा था।

वर्षहिं जलद भूमि नियराये।
यथा नवहि बुध विद्या पाये॥

कदाचित् जहाँ पहले महाद्वीप थे, अव समुद्र हो।

७१६―कभी-कभी संबंधवाचक क्रियाविशेषणों के बदले संबंध- वाचक विशेषण और संज्ञा से बने हुए वाक्यांश, और नित्य-सबंधी शब्दों के बदले निश्चयवाचक विशेषण और संज्ञा से बने हुए वाक्यांश