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७१८—कार्य-कारणवाचक क्रियाविशेषण-उपवाक्य व्यधिकरण समुच्चय-बोधकों से आरंभ होते हैं, जो बहुधा जोड़े से आते हैं। इनकी सूची नीचे दी जाती है—

आश्रित वाक्य में मुख्य वाक्य में
कि इसलिए, इतना, ऐसा, यहाँ तक
क्योंकि

जो, यदि, अगर, यद्यपि तो, तथापि, तोभी, किन्तु
चाहे—कैसा, कितना, कितना—क्यों, तो भी, पर
जो, जिससे, ताकि

७१९—इन दुहरे समुच्चयबोधकों में से कभी-कभी किसी एक का लोप हो जाता है, जैसे बुरा न मानो तो एक बात कहूँ। वह कैसा ही कष्ट होता, सह लेता था।

७२०—अब कुछ मिश्र वाक्यों का पृथक्करण बताया जाता है। इसमें मुख्य और आश्रित उपवाक्यों का परस्पर संबंध बताकर साधारण वाक्यों के समान इनका पृथक्करण किया जाता है—

(१) बड़े संतोष की बात है कि ऐसे सहृदय सज्जनों के सामने हमें अभिनय दिखाने का अवसर प्राप्त हुआ है।

यह समूचा वाक्य मिश्र वाक्य है। इसमें "बड़े संतोष की बात है" मुख्य उपवाक्य है और दूसरा उपवाक्य संज्ञा-उपवाक्य है। यह संज्ञा-उपवाक्य मुख्य उपवाक्य की "बात" संज्ञा का समानाधिकरण है। इन दोनों उपवाक्यों का पृथक्करण अलग-अलग साधारण वाक्यों के समान करना चाहिये, यथा,