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उद्देश्य | विधेय | |||||||
वाक्य | प्रकार | साधा॰ उद्देश्य | उद्देश्य-वर्द्धक | साधा॰ विधेय | कर्म | पूर्त्ति | विधेय-विस्तारक | संयोजक शब्द |
बड़े सन्तोष की बात है | मुख्य उपवाक्य | बात | बड़े सन्तोष की | है | … | … | … | … |
कि ऐसे सहृदय सज्जनों के सामने हमें अभिनय दिखाने का अवसर प्राप्त हुआ है | संज्ञा-उपवाक्य, मुख्य उपवाक्य की "बात" संज्ञा का समानाधिकरण | अवसर | ऐसे सहृदय सज्जनों के सामने अभिनय दिखाने का | हुआ है | … | प्राप्त | हमें | कि |
(२) स्वामी, यहाँ कौन तुम्हारा बैरी है जिसके बधने को कोप कर कृपाण हाथ में ली है। (मिश्र उपवाक्य)
(क) स्वामी, यहाँ कौन तुम्हारा बैरी है। (मुख्य उपवाक्य)
(ख) जिसके बधने को कोप कर कृपाण हाथ में ली है। [विशेषण-उपवाक्य, (क) का]
उद्देश्य | विधेय | |||||||
वाक्य | प्रकार | साधा॰ उद्देश्य | उद्देश्य-वर्द्धक | साधा॰ विधेय | कर्म | पूर्त्ति | विधेय-विस्तारक | संयोजक शब्द |
(क) | मुख्य उपवाक्य | कौन | … | है | … | तुम्हारा बैरी | यहाँ | … |
(ख) | विशेषण-उपवाक्य, (क) का | तुमने (लुप्त) | … | ली है | कृपाण | … | जिसके बधने के कोप कर; हाथ में | … |