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(६२१)
वाक्य | प्रकार | साधारण उद्देश्य | उद्देश्य-वर्द्धक | साधारण विधेय | कर्म | पूर्त्ति | विधेय-विस्तारक | सं॰ श॰ |
(क) | मुख्य उपवाक्य | मैं (लुप्त) | … | लिखता हूँ | उसे | … | … | तथापि |
(ख) | विशेषण-उपवाक्य, (क) का | मैंने (लुप्त) | … | सुना है | जो | … | जन-श्रुतियों द्वारा | … |
(ग) | विशेषण-उपवाक्य, (क) का, (ख) का समानाधिकरण | मैंने (लुप्त) | … | देखा है | जो कुछ | … | आँखों | और |
(घ) | क्रिया-विशेषण-उपवाक्य, (क) का विरोध | चरित्र | स्वामीजी का | नहीं है (लुप्त) | … | मालूम | मुझे, विशेष रूप से | यद्यपि |
पाँचवाँ अध्याय।
संयुक्त वाक्य।
७२१—संयुक्त वाक्य में एक से अधिक प्रधान उपवाक्य रहते हैं और इन प्रधान उपवाक्यों के साथ बहुधा इनके आश्रित उपवाक्य भी रहते हैं।
[सू॰— पहले (अ॰—६८०—ग में) कहा गया है कि संयुक्त वाक्यों में जो प्रधान (समानाधिकरण) उपवाक्य रहते हैं, वे एक दूसरे के आश्रित नहीं रहते, पर इससे यह न समझ लेना चाहिये कि उनमें परस्पर आश्रय कुछ भी नहीं होता। बात यह है कि आश्रित उपवाक्य प्रधान उपवाक्य पर जितना