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वाक्य के कुछ भाग मुख्य और कुछ गौण होते हैं। जिस वाक्य में एक उद्देश्य के अनेक विधेय हों या अनेक उद्देश्यों का एक विधेय हो अथवा अनेक उद्देश्यों के अनेक विधेय हों, उसीको संकुचित संयुक्त वाक्य मानना उचित है। यदि वाक्य के दूसरे भाग अनेक हो और वे समानाधिकरण समुच्चय-बोधकों के द्वारा भी जुड़े हों, तो भी उनके कारण साधारण वाक्य संयुक्त नहीं माना जा सकता, क्योंकि ऐसा करने से एक ही साधारण वाक्य के कई अनावश्यक उपवाक्य बनाने पड़ेंगे।

उदा०―रुक्मिणी उसी दिन से, रात-दिन, आठ पहर, चौंसठ घड़ी, सोते-जागते, बैठे-खड़े, चलते-फिरते, खाते-पीते, खेलते, उन्हींका ध्यान किया करती थी और गुण गाया करती थी। इस वाक्य में एक उद्देश्य के दे विधेये हैं और देाने विधेयों के एकत्र आठ विधेय-विस्तारक हैं। यदि हम इनमें से प्रत्येक विधेय-विस्तारक को एक-एक विधेय के साथ अलग-अलग लिखें, तो दो वाक्यों के बदले सोलह वाक्य बनाने पड़ेंगे। परन्तु ऐसा करने के लिए कोई कारण नहीं है, क्योंकि एक तो ये सब विधेय-विस्तारक किसी समुच्चयबोधक से नहीं जुड़े हैं और दूसरे इस प्रकार के शब्द वा वाक्यांश वाक्य के केवल गौण अवयव हैं।

७२८―कभी-कभी साधारण वाक्य में “और” से जुड़ी हुई ऐसी दो संज्ञाएँ अती हैं जो अलग-अलग वाक्यों में नहीं लिखी जा सकतीं अथवा जिनसे केवल एक ही व्यक्ति वा वस्तु का बेाध होता है; जैसे, दो और दो चार होते हैं। राम और कृष्णा मित्र हैं। आज उसने केवल रोटी और तरकारी खाई। इस प्रकार के वाक्यों को संयुक्त वाक्य नहीं मान सकते क्योंकि इनमें आये हुए दुहरे शब्दों का क्रिया से अलग-अलग सम्बन्ध नहीं हैं। इन शब्दों को साधारण वाक्य का केवल संयुक्त भाग मानना चाहिये।

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