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(६) इच्छाबोधक।

सा०—ईश्वर तुम्हें चिरायु करे। मि०―वह जहाँ रहे वहाँ सुख से रहे। सं०―भगवन्, मैं सुखी रहूॅ और मेरे समान दूसरे भी सुखी रहें।

(७) सुन्देहसूचक।

सा०―यह चिट्ठी लड़के ने लिखी होगी। मि०―जो चिट्ठी मिली है वह उस लड़के ने लिखी होगी। सं०―नौकर वहाँ से चला होगा और सिपाही वहाँ पहुँचा होगा।

(८) संकेतार्थक।

मि०―जो वह आज आवे, तो बहुत अच्छा हो। जो मैं आपको पहले से जानता, तो आपको विश्वास न करता।

[सू०—ऊपर के वाक्यों के जो अर्थ बताये गये है उनके लिये मिश्र वाक्य में यह आवश्यक नहीं है कि उसके उपवाक्यों से भी वैसाही अर्थ सूचित हो जो मुख्य वाक्य से सूचित होता है, पर संयुक्त वाक्य के उपवाक्य ‘समानार्थी होने चाहिये।]

७३४―भिन्न-भिन्न अर्थवाले वाक्यों का पृथक्करण उसी रीति से किया जाता है जो तीनों प्रकार के वाक्येां के लिये पहले लिखी जा चुकी है।

(अ) अज्ञार्थक वाक्य का उद्देश्य मध्यम पुरुष सर्वनाम रहता है; पर बहुधा उसका लोप कर दिया जाता है। कभी-कभी अन्य पुरुष सर्वनाम आज्ञार्थक वाक्य का उद्देश्य होता है; जैसे वह कल से यहाँ न आवे, लड़के कुॅए के पास न जावे।

(आ) जब प्रश्नार्थक वाक्य में केवल क्रिया की घटना के विषय में प्रश्न किया जाता है, तब प्रश्नवाचक अव्यय ‘क्या' का प्रयोग किया जाता है और वह बहुधा वाक्य के आरंभ अथवा अंत में आता है; परन्तु वह वाक्य का कोई अवयव नही समझा जाता।