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(६३२)

 

(३) पूर्ण-विराम ।

(४) प्रश्न-चिह्न ?

(५) आश्चर्य-चिह्न !

(६) निर्देशक (डैश) ―

(७) कोष्ठक ( )

(८) अवतरण-चिह्न “ "

[सू०―अँगरेजी में कोलन नामक एक और चिह्न (:) है, पर हिंदी में इससे विसर्ग का भ्रम होने के कारण इसका उपयोग नहीं किया जाता। पूर्ण-विराम के चिह्न का रूप (।) हिंदी का है, पर शेष चिह्नो के रूप अँगरेजी ही के है।]

(१) अल्प-विराम।

७३७―इस चिह्न का उपयोग बहुधा नीचे लिखे स्थानों में किया जाता है―

(क) जब एक ही शब्द-भेद के दो शब्दों के बीच में समुच्चय-बाधक न हो; जैसे, वहाॅ पीले, हरे खेत दिखाई देते थे। वे लोग नदी, नाले पार करते चले।

(ख) यदि समुच्चय-बोधक से जुड़े हुए दो शब्दों पर विशेष अवधारण देना हे; जैसे, यह पुस्तक उपयोगी, अतएव उपादेय है।

(गह) जब एक ही शब्द-भेद के तीन या अधिक शब्द इवें और उनके बीच विकल्प से समुच्चय-बोधक रहे, तब अंतिम शब्द को छोड़ शेष शब्दों के पश्चात्; जैसे, चातक-चञ्चु, सीप का सम्पुट, मेरा घट भी भरता है।

(घ) जब कई शब्द जोड़े से आते हैं, तब प्रत्येक जाड़े के पश्चात्; जैसे, ब्रह्मा ने दुख और सुख, पाप और पुण्य, दिन और रात, ये सब बनाये हैं।

(ङ) समानाधिकरण शब्दों के बीच मे; जैसे, ईरान के बादशाह, नादिरशाह ने दिल्ली पर चढ़ाई की।