में क्या-क्या त्रुटियाँ हैं, और किन-किन बातों की आवश्यकता है, और आवश्यक सुधार किये जाने के लिये आन्दोलन न करने लगेंगे, तब तक देश की दशा सुधरना बहुत कठिन होगा।
(३) पूर्ण-विराम।
७३९―इसका उपयोग नीचे लिखे स्थानों में होता है―
(क) प्रत्येक पूर्ण वाक्य के अन्त में, जैसे, इस नदी से हिन्दु स्थान के दो समविभाग होते हैं।
(ख) वहुधा शीर्षक और ऐसे शब्द के पश्चात् जो किसी वस्तु के उल्लेख-मात्र के लिये आता है, जैसे राम-वन-गमन। पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं।―तुलसी।
(ग) प्राचीन भाषा के पद्यों में श्रर्द्धाली के पश्चात्, जैसे―
जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी।
सो नृप प्रवसि नरक अधिकारी॥
[सू०―पूरे छंद के अंत में दो खडी लकीरें लगाते है।]
(घ) कभी-कभी अर्थ की पूर्णता के कारण और, परन्तु, अथवा, इसलिए, आदि समुच्चय-बोधको के पूर्व-वाक्य के अंत में, जैसे, ऐसा एक भी मनुष्य नहीं जो संसार में कुछ न कुछ लाभकारी कार्य न कर सकता हो। और ऐसा भी कोई मनुष्य नहीं जिसके लिये संसार में एक न एक उचित स्थान न हो।
(४) प्रश्न-चिह।
७४०―यह चिह्न प्रश्नवाचक वाक्य के अंत में लगाया जाता है, जैसे, क्या यह बैल तुम्हारा ही है? वह ऐसा क्यो कहता था कि हम वहाँ न जायँगे?
(क) प्रश्न का चिह्न ऐसे वाक्यों में नहीं लगाया जाता जिनमें प्रश्न आज्ञा के रूप में हो; जैसे, कलकत्ते की राजधानी बताओ।