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वह केवल मनोविनोद की सामग्री समझी जाय―वहीं समझना चाहिये कि उसका उद्देश्ये नष्ट हो गया―उसका ढंग बिगड़ गया।

(ख) किसी वाक्य में भाव का अचानक परिवर्त्तन होने पर, जैसे, सबको सान्त्वना देना, बिखरी हुई सेना का इकट्ठा करना और―और क्या?

(ग) किसी विषय के साथ तत्संबंधी अन्य बातों की सूचना देने मे; जैसे, इसी सोच में सबेरा हो गया कि हाय! इस वीरान में अब कैसे प्राण बचेंगे—न जाने, मैं कौन मौत मरूँगा! इँगलैंड के राजनीतिज्ञों के दो दल हैं―एक उदार, दूसरा अनुदार।

(घ) किसी के वचनों को उद्धृत करने के पूर्व; जैसे, मैं― अच्छा यहाँ से जमीन कितनी दूर पर होगी? कप्तान―कम से कम तीन सौ मील पर। हम लेागों को सुन-सुनाकर वह अपनी बोली में बकने लगा―तुम लोगों को पीठ से पीठ बाँधकर समुद्र में डुबा दूँगा! कहा है―

साँच बरोबर तप नहीं, झूठ बरोबर पाप।

[सू०―अतिम उदाहरण में कोई-कोई लेखक कोलन और डैश लगाते हैं, पर हिंदी में कोलन को प्रचार नहीं है।]

(ङ) लेख के नीचे लेखक या पुस्तक के नाम के पूर्व; जैसे--

किते न औगुन जग करै, नय वय चढती धार।

―बिहारी

(च) कई एक परस्पर-संबंधी शब्दों के साथ-साथ लिखकर वाक्य का संक्षेप करने में; जैसे प्रथम अध्याय―प्रार भी वार्त्ता। मन―सेर―छटाँक। ६―११―१९१८।

(छ) बातचीत में रुकावट सूचित करने के लिये; जैसे मैं― अब―चल―नहीं―सकता।