(८) अवतरण-चिह्न।
७४४―इन चिह्नों का प्रयोग नीचे लिखे स्थानों में किया जाता है―
(क) किसी के महत्त्वपूर्ण वचन उद्धृत करने मे अथवा कहावतों मैं; जैसे, इसी प्रेम से प्रेरित होकर ऋषियों के मुख से यह परम पवित्र वाक्य निकला था―“जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी”। उस बालक के सुलक्षण देखकर सब लोग यही कहते थे कि “होनहार विरवान के होत चीकने पात"।
(ख) व्याकरण, तर्क, अलंकार, आदि साहित्य-विषयों के उदाहरणो में, जैसे, “मैर्य-वंशी राजाओं के समय में भी भारत-वासियों को अपने देश का अच्छा ज्ञान था"।—यह साधारण वाक्य हैं। उपमा का उदाहरण―
“प्रभुहिं देखि सब नृप हिय हारे।
जिमि राकेश उदय भये तारे॥”
(ग) कभी-कभी संज्ञा-वाक्य के साथ, जो मुख्य वाक्य के पूर्व आता है, जैसे, “रबर काहे का बनता है“, यह बात बहुतेरों को मालूम नही है।
(घ) जब किसी अक्षर, शब्द या वाक्य का प्रयोग अक्षर या शब्द के अर्थ में होता है; जैसे हिन्दी में, ‘लृ’ का उपयोग नहीं होता। “शिक्षा" बहुत व्यापक शब्द है। चारों ओर से “मारो मारो” की आवाज सुनाई देती थी।
(ङ) अप्रचलित विदेशी शब्दों में, विशेष प्रचलित अथवा आक्षेप-येाग्य शब्दों में और ऐसे शब्दों में जिनका धात्वर्थ बताना हो, जैसे, इन्होने बी० ए० की परीक्षा बडी नामवरी के साथ “पास” की। आप कलकत्ता विश्वविद्यालय के “फैलो” थे। कहते