(क) भिन्न-भिन्न विषयों के अलग-अलग लिखे हुए लेखो वा अनुच्छेदों के अन्त में भी; जैसे――
आजकल शिमले में हैजे का प्रकोप है।
आगामी बड़ी व्यवस्थापक सभा की बैठक कई कारणों से नियत तिथि पर न हो सकेगी, क्योंकि अनेक सदस्यों का और-और सभा-समितियों में संमिलित होना है।
[सू०―लेखों के अंत में इस चिह्न के उदाहरण समाचार-पत्रों अथवा मासिक पुस्तकों में मिलते हैं।]
(४) अपूर्णता-सूचक चिह्न।
७४६―किसी लेख में से जब कोई अनावश्यक अंश छोड़ दिया जाता है, तब उसके स्थान में यह चिह्न लगा देते हैं; जैसे,
×××××
पराधीन सपनेहु सुख नाही॥
(क) जब वाक्य का कोई अंश छोड़ दिया जाता है, तब यह चिह्न (.........) लगाते हैं; जैसे, तुम समझते हो कि यह निरा बालक है, पर............।
(५) हंस-पद।
७५०—लिखने में जब कोई शब्द भूल से छूट जाता है तब उसे पंक्ति के ऊपर अथवा हाशिये पर लिख देते हैं और उसके मुख्य स्थान के नीचे यह ^ चिह्न कर देते हैं; जैसे, रामदास की रचना ^ स्वाभाविक है। किसी दिन हम भी आपके ^आवेगे।
(६) टीका-सूचक चिह्न।
७५१—पृष्ठ के नीचे अथवा हाशिये में कोई सूचना देने के लिए तत्संबंधी शब्द के साथ कोई एक चिह्न, अङ्क अथवा अक्षर लिख देते हैं; जैसे, उस समय मेवाड़ में राना उदयसिह[१] राज करते थे।
- ↑ *ये वही उदयसिंह थे जिनकी प्राण-रक्षा पन्नादाई ने की थी।