पृष्ठ:हिंदी व्याकरण.pdf/६६५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(६४४)

 

परिशिष्ट (क)।

कविता की भाषा।

१―हिंदी कविता प्रायः तीन प्रकार की उपभाषाओ में होती है―ब्रजभाषा, बैसवाड़ी और खड़ीबोली। हमारी अधिकांश प्राचीन कविता ब्रजभाषा में पाई जाती है और उसका बहुत कुछ प्रभाव अन्य दोनों भाषाओं पर भी पड़ा है। स्वय ब्रजभाषा ही में कभी-कभी बुंदेलखंडी तथा दुसरी दो भाषाओं का थोड़ा-बहुत मेल पाया जाता है, जिससे यह कहा जा सकता है कि शुद्ध ब्रजभाषा की कविता प्रायः बहुत कम मिलती है। बैसवाड़ी में, जिसे कोई-कोई अवधी नाम से अभिहित करते हैं, तुलसीदास तथा अन्य दो-चार श्रेष्ठ कवियों ने कविता की है; परंतु शेष प्राचीन तथा कई एक अर्वाचीन कवियों ने मिश्रित ब्रजभाषा में अपनी कविता लिखी है। आजकल कुछ वर्षों से खड़ीबाली अर्थात् बोलचाल की भाषा में कविता होने लगी है। यह भाषा प्रायः गद्य ही की भाषा है।

२―इस परिशिष्ट में हिंदी कविता की प्राचीन भाषाओं के शब्द-साधन के कई एक नियम संक्षेप में [१]देने का प्रयत्न किया जाता है। इस विषय में ब्रजभाषा ही की प्रधानता रहेगी, तो भी


  1. इस विषय के संक्षेप में लिखने का कारण यह है कि व्याकरण के नियम गद्य ही की भाषा पर रचे जाते हैं और उसमें पद्य के प्रचलित शब्दों का विचार केवल प्रसंग-वश किया जाता है। यद्यपि आधुनिक हिंदी का ब्रजभाषा से घनिष्ट संबध हैं, तथापि व्याकरण की दृष्टि से दोनों भाषाओं में बहुत कुछ अंतर है। यदि केवल इतना ही अंतर पूर्णतया प्रकट करने का प्रयत्न किया जावे, तोभि ब्रजभाषा का एक छोटा-मोटा व्याकरण लिखने की यावश्यनता होगी; और इतना करना मी प्रस्तुत व्याकरण के उद्देश्य के बाहर है। इस पुस्तक में कविता के प्रयोग का थोड़ा-बहुत विचार यथाम्भव हो चुका है, पर यहाँ यह कुछ अधिक नियमित रूप से, पर संक्षेप में, किया जायगा। हिंदी कविता की भाषाओं के पूर्ण विवेचन करने के लिये एक स्वतंत्र पुस्तक की आवश्यकता है।