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कारक।
७—पद्य में सज्ञाओं के साथ भिन्न-भिन्न कारकों में नीचे लिखी विभक्तियों को प्रयोग होता है—
कत्त—ने (क्वचित्)। रामचरित-मानस में इसका प्रयोग नहीं हुआ।
कर्म—हि, कौं, कहँ
करण—तें, सो
संप्रदान–हिं, कौं, कहँ
अपादान—तें, सों
संबंध—कौ, कर, केरा। भेद्य के लिंग और वचन के अनुसार कौ और केरा में विकार होता है।
अधिकरण—मे, मां, माहि, माँझ, महँ।
सर्वनामों की कारक-रचना।
८—सज्ञाओं की अपेक्षा सर्वनामो में अधिक रूपांतर होता है; इसलिए इनके कुछ कारकों के रूप यहाँ दिये जाते हैं।
कारक | एकवचन | बहुवचन |
---|---|---|
कर्त्ता | मैं हौं | हम |
विकृत रूप | मो | हम |
कर्म | मोकौं, मोहिं मोकहँ (बैस°) |
हमकौं हमहिं हमरूहँ |
संबंध | मेरो, मोर, मोरा मम (सं°) |
हमाराे, हमार |
मध्यम-पुरुष सर्वनाम। | ||
कर्ता | तू, तैं | तुम |
विकृत रूप | तो | तुम |