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स्पर्शव्यंजनों में प्रत्येक वर्ग का दूसरा और चौथा अक्षर तथा ऊष्म महाप्राण हैं, जैसे,—ख, घ, छ, झ, ठ, ढ, थ, ध, फ, भ और श, ष, स, हो ।

शेष व्यंजन अल्पप्राण हैं। सब स्वर अल्पग्राण हैं।

[ सूचना-–-अल्पप्राण अक्षरों की अपेक्षा महाप्राणों में प्राणवायु का उपयोग अधिक श्रमपूर्वक करना पड़ता है। ख, घ, छ, आदि व्यंजनों के उच्चारण में उनके पूर्व-वर्ती व्यंजनों के साथ हकार की ध्वनि मिली हुई सुनाई पड़ती है,अर्थात् ख = क् +ह, छ = च् +ह । उर्दू, अंगरेजी आदि भाषाओं में महा-प्राण अक्षर ह मिलाकर बनाये गये हैं ।]

४५-हिंदी में ड और ढ के दो दो उच्चारण होते हैं-( १ ) मूर्द्धन्य (२), द्विस्पृष्ट।।

( १ ) मूर्द्धन्य उच्चारण नीचे लिखे स्थानों में होते हैं---

( क ) शब्द के आदि मे; जैसे, डाक, डमरू, डग, ढम, ढिग,ढंग, ढोल, इत्यादि ।

( ख ) द्वित्व से, जैसे, अड्डा, लड्ड, खढ्डा ।

(ग) ह्रस्व स्वर के पश्चात् अनुनासिक व्यंजन के संयोग में, जैसे, डंड, पिंडी, चंडू, मंडप, इत्यादि।

(२) द्विस्पृष्ट उच्चारण जिह्वा का अग्र भाग उलटाकर मूद्धा में लगाने से होता है। इस उच्चारण के लिए इन अक्षरों के नीचे एक एक बिंदी लगाई जाती है । द्विस्पृष्ट उच्चारण बहुधा नीचे लिखे स्थानों में होता है--

( क ) शब्द के मध्य अथवा अंत मे; जैसे, सड़क, पकड़ना, आड़, गढ़, चढ़ाना, इत्यादि ।

( ख ) दीर्घ स्वर के पश्चात् अनुनासिक व्यंजन के संयोग में दोनों उच्चारण बहुधा विकल्प से होते हैं; जैसे, मुंडना, मॅड़ना, खाँड, खॉड़; मेढा, मेंढा, इत्यादि ।