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४६-ड, ण, न, म, का उच्चारण अपने अपने स्थान और

नासिका से किया जाता है। विशिष्ट स्थान से श्वास उत्पन्न कर उसे नाक के द्वारा निकालने से इन अक्षरों का उच्चारण होती है। केवल स्पर्श-व्यंजनों के एक एक वर्ग के लिये एक एक अनुनासिक व्यंजन है,अंतस्थ और ऊष्म के साथ अनुनासिक व्यंजन का कार्य अनुस्वार से निकलता है। अनुनासिक व्यंजनों के बदले में भी विकल्प से अनुस्वार आता है, जैसे, अङ्ग =अंग, कण्ठ =कंठ, अंश, इत्यादि ।

४७–अनुस्वार के आगे कोई अंतस्थ व्यंजन अथवा- ह हो तो उसका उच्चारण दंत-तालव्य अर्थात् वॉ के समान होता है, परंतु श, ष, स के साथ उसका उच्चारण बहुधा न् के समान होता है; जैसे, संवाद, संरक्षा, सिंह, अंश, हंस इत्यादि ।

४८–अनुस्वार (') और अनुनासिक (^) के उच्चारण में अंतर है, यद्यपि लिपि में अनुनासिक के बदले बहुधा अनुस्वार ही का उपयोग किया जाता है (देखो ३९ वाँ अंक ) । अनुस्वार दूसरे स्वरों अथवा व्यंजनों के समान एक अलग ध्वनि है; परंतु अनु-नासिक स्वर की ध्वनि केवल नासिक्य है। अनुस्वार के उच्चारण में ( देखो ४६ वाँ अंक ) श्वास केवल नाक से निकलता है, पर अनुना-सिक के उच्चारण में वह मुख और नासिका से एक ही साथ निकाला जाता है। अनुस्वार तीव्र और अनुनासिक धीमी ध्वनि है, परंतु दोनों के उच्चारण के लिये पूर्ववर्ती स्वर की आवश्यकता होती है, जैसे, रंग,रॉग; कंबल, कॅबल, वेदांत, वेदांत, हंस, हँसना, इत्यादि ।

४९--संस्कृत-शब्दों में अंत्य अनुस्वार का उच्चारण म् के समान होता है, जैसे, वरं, स्वयं, एवं ।।

५०—हिंदी में अनुनासिक के बदले बहुधा अनुस्वार लिखा जाता है, इसलिए अनुस्वार का अनुनासिक उच्चारण जानने के लिए कुछ नियम नीचे दिये जाते हैं--