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काल-वाचक―अब, अबै, अबहि (अभी), तब, तबै, तबहिं (तभी), कब, कबै, कब्हुँ (कभी), जब, जबै, जबहि (जभी)।
रीति-वाचक―ऐसे, अस, यों, इमि, तैसे, तस, त्यों, वैसे, तिमि, कैसे, कस, क्यों, किमि, जैसे, जस, ज्यों, जिमि।
परिमाण-वाचक―बहुत, बड़, केवल,निपट, अतिशय, अति।
संबंध-सूचक।
निकट, नेरे, ढिग, बिन, मध्य, सम्मुख, तरे, ओर, बिनु, लौं, लगि, नाईं, अनुरूप, समान, करि, जान, हेतु, सरिस, इव, लाने, सहित, इत्यादि।
समुच्चय-बाधक।
संयोजक―और, अरु, फिर, पुनि, तथा, कहॅ-कहाँ।
विभाजक―नतरु, नाहित, न—न, कै―कै, बरु, मकु (राम०), घौं, की, अथवा, किवा, चाहै-चाहै, का-का।
विरोध-दर्शक―पै, तदपि, यदपि―तदपि।
परिणामदर्शक―यातें, यासों, इहि हेतु, जातें।
स्वरूपबोधक―कै, जो।
संकेत-दर्शक―जो―तो, जोपै―तो।।
विस्मयादि-बोधक।
हे, रे, हा, हाय, हा-हा, अहह, धिक्, जय, वाहि, पाहि, एरे।
पशिष्ट (ख)
काव्य-स्वतन्त्रता।
११―कविता की दोनों प्रकार की भाषाओं में अलग-अलग प्रकार की काव्य-स्वतत्रता पाई जाती है; इसलिए इसका विचार दोनों के संबंध से अलग-अलग किया जायेगा।