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शिरोरोग का अंत एक दिन लिये बहाना। (तत्रैव)।
२५―शब्दों की तोड़-मरोड़―
आधार=अधारा (प्रिय०)।
तूही=तुही (स०)।
चाहता=चहता (तत्रैव)।
नही=नहि (एकांत०)।
२६―संस्कृत की वर्ण-गुरुता―
किंतु श्रमी लेाग उसी सबेरे (हिं० प्र०)।
मुझ पर मत लाना दोष कोई कदापि (सर० )।
उशीनर-क्षितीश ने स्वसांस दान भी किया (सर०)।
२७―पद-पूरक शब्द―
है सु कोकिल समान कलबैनी (सर०)।
न होगी अहो पुष्ट जौलौं रत्रभाषा (तत्रैव)।
२८―विषम तुकांत―
रत्न-खचित सिंहासन-ऊपर जो सदैव ही रहते थे
नृप-मुकुटों के सुमन रजःकण जिनके भूषित करते थे

―(सर०)।

जब तक तुम पय पान करोगे, नित नीराग-शरीर रहोगे
फूलोगे नित नये फलोगे, पुत्र कभी मद-पान न करना।

―(सूक्ति०)।

(ख) व्याकरण दोष।

२६―संकर-समास―
वन-वाग (स०)।
रण-खेत (तत्रैव)।
लोकि-चरब (तत्रैव)।
मंजु-दिल (तत्रैव)।