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भारत-बाजी (तत्रैव)।
३०―शब्दों के प्राचीन रूप–
कीजिये=करिये (सर०)।
हूजियो=हूजो (तत्रैव)।
देओगे=दोगे (तत्रैव)।
जलती है=जलै है (एकांत)।
सरलपन=सरलपना (प्रिय०)।
३१―शब्द-भेदों का प्रयोगांतर―
(क) अकर्मक क्रिया का प्रयोग सकर्मक क्रिया के समान तथा

सकर्मक का अकर्मक के समान―

(१) प्रेम सिंधु में स्व-जन वर्ग को शीघ्र नहा दो (सर०)।
(२) व्यापक न ऐसी एक भाषा और दिखलाती यहाँ।

―(सर०)।

(ख) विशेषण का क्रिया-विशेषण बनाना–जीवन सुखद बिताते थे (सर०)।
३२―अप्राणिवाचक कर्म के साथ अनावश्यक चिह्न―
सहसा उसने पकड़ लिया कृष्ण के कर को (सर०)।
पाकर उचित उत्कार को (तत्रैव)।
३३―“नही” के बदले “न” का प्रयोग―
शुक! हो सकते फलो से वे कदापि रसाल हैं (स०)।
लिखना मुझे आता है (तत्रैव)।
३४―भूत-काल का प्राचीन रूप―
रति भी जिसको देख लजानी (क० क०)।
मोह-महाराज की पताका फहरानी है (तत्रैव)।
३५―कर्मणि-प्रयोग की भूल―
तद्विपय एक रस-केलि आप निर्धारे (सर०)।